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________________ ७२६ अध्याय ६ सूत्र ४० है ( चौदहवें गुणस्थानमें होता है ) २-केवलीके मनोयोग संबंधी स्पष्टीकरण (१) केवली भगवानके अतीन्द्रिय ज्ञान होता है, इसका यह मतलब नहीं है कि उनके द्रव्यमन नहीं है । उनके द्रव्यमनका सद्भाव है किंतु उनके मन निमित्तक ज्ञान नहीं है क्योकि मानसिकज्ञान तो क्षायोपशमरूप है और केवलो भगवानके क्षायिकज्ञान है अतः इसका अभाव है। २. मनोयोग चार प्रकारका है (१) सत्य मनोयोग ( २ ) असत्य मनोयोग ( ३ ) उभय मनोयोग और ( ४ ) अनुभय मनोयोग, इस चौथे अनुभय मनोयोगमें सत्य और असत्य दोनों नही होते । केवली भगवानके इन चारमेंसे पहला और चौथा मनोयोग वचनके निमित्तसे उपचारसे कहा जाता है। ३. प्रश्न-यह तो ठीक है कि केवलीके सत्यमनोयोगका सद्भाव है, किन्तु उनके पदार्थोका यथार्थ ज्ञान है और संशय तथा अध्यवसायरूप ज्ञानका अभाव है इसीलिये उनके अनुभय अर्थात् असत्यमृषामनोयोग कैसे संभव होता है ? उत्तर--संशय और अनध्यवसायका कारणरूप जो वचन है उसका निमित्त कारण मन होता है, इसीलिये उसमे श्रोताके उपचारसे अनुभय धर्म रह सकता है अतः सयोगी जिनके अनुभय मनोयोगका उपचारसे सद्भाव कहा जाता है । इसप्रकार सयोगी जिनके अनुभयमनोयोग स्वीकार करने में कोई विरोध नही है । केवलीके ज्ञानके विषयभूत पदार्थ अनंत होनेसे, और श्रोताके प्रावरण कर्मका क्षयोपशम अतिशयरहित होनेसे केवलीके वचनोंके निमित्तसे संशय और अनध्यवसाय की उत्पत्ति हो सकती है, इसीलिए उपचारसे अनुभय मनोयोगका सद्भाव कहा जाता है। (श्री धवला पु. १ पृष्ठ २८२ से २८४ तथा ३०८) ३-केवलीके दो प्रकारका वचन योग केवली भगवानके क्षायोपशमिकज्ञान ( भावमन ) नही है तथापि
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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