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मोक्षशास्त्र प्रतिपाति और व्युपरतक्रियानिवर्ति ये दो ध्यान [ केवलिनः ] केवली भगवान्के होते हैं।
टीका तेरहवें गुणस्थानके अंतिम भागमें शुक्लध्यानका तोसरा भेद होता है, उसके बाद चौथा भेद चौदहवें गुणस्थानमें प्रगट होता है ॥ ३८ ॥
शुक्लध्यानके चार भेद पृथक्त्वैकत्ववितर्कसूक्ष्म क्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रिया
निवर्तीनि ॥३६॥ अर्थ~[ पृथक्त्वैकत्व वितर्क सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति व्युपरतक्रियानिवर्तीनि] पृथक्त्ववितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्मक्रियाप्रतिपाति और व्युपरत क्रियानिवर्ति ये शुक्लध्यानके चार भेद हैं ॥ ३९ ॥
अब योगकी अपेक्षासे शुक्लध्यानके स्वामी बतलाते हैं।
त्र्येकयोगकाययोगायोगानाम् ॥ ४०॥
अर्थ-[व्येकयोगकाययोगायोगानाम् ] ऊपर कहे गये चार प्रकारके शुक्लध्यान अनुक्रमसे तीनयोगवाले, एकयोगवाले, मात्र काययोगवाले और अयोगी जीवोके होता है।
टीका १-पहला पृथक्त्ववितध्यान मन, वचन और काय इन तीन योगोंके धारण करनेवाले जीवोंके होता है ( गुणस्थान ८ से ११)
दूसरा एकत्ववितर्कध्यान तीनमेंसे किसी एक योगके धारकके होता है ( १२ वे गुणस्थानमें होता है )
तीसरा सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिध्यान मात्र काययोगके धारण करने वालेके होता है ( १३ वें गुणस्थानके अतिम भाग)
चौथा व्युपरतक्रियानिवर्तिध्यान योग रहित-अयोगी जीवोंके होता