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मोक्षशास्त्र
२ - इस सूत्र में ध्याता ध्यान, ध्येय और ध्यानका समय ये चार बातें निम्नरूपसे आ जाती हैं
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(१) जो उत्तमसंहननधारी पुरुष है वह ध्याता है । (२) एकाग्रचिंताका निरोध सो ध्यान है ।
(३) जिस एक विषयको प्रधान किया सो ध्येय है ।
(४) अन्तर्मुहूर्त यह ध्यानका उत्कृष्ट काल है ।
मुहूर्त का अर्थ है ४८ मिनिट और अन्तः मुहूर्त का अर्थ है ४८ मिनटके भीतरका समय । ४८ मिनिटमें एक समय कम सो उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है ।
३- यहाँ ऐसा कहा है कि उत्तमसंहननवालेके अन्तर्मुहूर्त तक ध्यान रह सकता है, इसका यह अर्थ हुवा कि अनुत्तम संहननवालेके सामान्य ध्यान होता है अर्थात् जितना समय उत्तमसंहननवालेके रहता है उतना समय उसके ( ग्रनुत्तम संहननवालेके ) नही रहता । इस सूत्र कालका कथन किया है जिसमें यह सम्बन्ध गर्भितरूपसे आ जाता है ।
४- अष्टप्राभृतके मोक्षप्राभृतमें कहा है कि जीव आज भी तीन रत्न (रत्नत्रय) के द्वारा शुद्धात्माको ध्याकर स्वर्गलोकमें अथवा लोकांतिक मे देवत्व प्राप्त करता है और वहाँसे चयकर मनुष्य होकर मोक्ष प्राप्त करता है ( गाथा ७७ ), इसलिये पंचमकालके अनुत्तम संहननवाले जीवोंके भी धर्मध्यान हो सकता है ।
प्रश्न- ध्यान में चिंताका निरोध है, और जो चिंताका निरोध है सो प्रभाव है, अतएव उस अभावके कारण ध्यान भी गधेके सीगकी तरह असत् हुआ ?
उत्तर- - ध्यान श्रसत्रूप नहीं । दूसरे विचारोंसे निवृत्तिकी अपेक्षासे प्रभाव है, परन्तु स्व विषयके प्राकारकी अपेक्षासे सद्भाव है अर्थात् उसमें स्वरूपको प्रवृत्तिका सद्भाव है, ऐसा 'एकाग्र' शब्दसे निश्चय किया जा रायना है । स्वरुपकी अपेक्षासे ध्यान विद्यमान सतरूप है ।