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मोक्षशाख
ज्ञानाम् ] आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य ग्लान, गरण, कुल, संघ, साधु ओर मनोज्ञ इन दश प्रकारके मुनियोंकी सेवा करना सो वैयावृत्य तपके दश भेद हैं ।
टीका
१ - सूत्रमें आये हुये शब्दोंका अर्थ
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(१) आचार्य - जो मुनि स्वयं पाँच प्रकारके आचारको आचरण करें और दूसरोंको आचरण करावें उन्हें प्राचार्यं कहते हैं ।
(२) उपाध्याय - जिनके पाससे शास्त्रोंका अध्ययन किया जाय उन्हें उपाध्याय कहते हैं ।
(३) तपस्वी - महान उपवास करनेवाले साधुको तपस्वी कहते हैं ! (४) शैक्ष्य - शास्त्र अध्ययनमें तत्पर मुनिको शैक्ष्य कहते है । (५) ग्लान -- रोग से पीड़ित मुनिको ग्लान कहते हैं ।
(६) गण - वृद्ध मुनियोंके अनुसार चलनेवाले मुनियोंके समुदायको गर कहते हैं । (७) कुल
(८) संघ ऋषि, यति मुनि और अनगार इन चार प्रकारके मुनियोंका समूह संघ कहलाता है । ( संघके दूसरी तरहसे मुनि, आर्यिका श्रावक और श्राविका ये भी चार भेद हैं )
- दीक्षा देनेवाले आचार्यके शिष्य कुल कहलाते है ।
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(९) साधु - जिनने बहुत समयसे दीक्षा ली हो वे साधु कहलाते हैं अथवा जो रत्नत्रय भावनासे अपनी आत्माको साधते हैं उन्हें साधु कहते हैं ।
(१०) मनोज्ञ -- मोक्षमागं प्रभावक, वक्तादि गुणोसे शोभायुक्त जिसकी लोकमें अधिक ख्याति हो रही हो ऐसे विद्वान मुनिको मनोज्ञ कहते हैं, अथवा उसके समान असंयत सम्यग्दृष्टिको भी मनोज्ञ कहते हैं ।
( सर्वार्थ सि० टीका )