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अध्याय ६ सूत्र २३-२४ अब सम्यक् विनयतपके चार भेद बतलाते हैं
ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः ॥२३॥ अर्थ-[ ज्ञानदर्शनचारित्रोपचाराः] ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, और उपचारविनय ये विनयतपके चार भेद हैं।
टीका (१) ज्ञानविनय-आदरपूर्वक योग्यकालमे सत्शास्त्रका अभ्यास करना, मोक्षके लिए, ज्ञानका ग्रहण-अभ्यास-संस्मरण आदि करना सो ज्ञानविनय है।
(२) दर्शनविनय-शंका, कांक्षा, आदि दोष रहित सम्यग्दर्शनको धारण करना सो दर्शनविनय है।
(३) चारित्रविनय-निर्दोष रीतिसे चारित्रको पालना ।
(४) उपचारविनय--आचार्य आदि पूज्य पुरुषोंको देखकर खड़े होना, नमस्कार करना इत्यादि उपचार विनय है । ये सब व्यवहारविनयके भेद हैं।
निश्चयविनयका स्वरूप जो शुद्ध भाव है सो निश्चयविनय है। स्वके अकषायभावमें अभेद परिणमनसे, शुद्धतारूपसे स्थिर होना सो निश्चयविनय है, इसीलिये कहा जाता है कि "विनयवंत भगवान कहावे, नही किसीको शीष नमा" अर्थात् भगवान विनयवन्त कहे जाते है किन्तु किसीको मस्तक नही नवाते ॥२३॥
अब सम्यक् वैयावृत्य तपके १० भेद बतलाते हैं श्राचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणवुलसंघसाधु
मनोज्ञानाम् ॥ २४ ॥ . अर्थ-[प्राचार्योपाध्यायतपस्विशैक्ष्यग्लानगणकुलसंघसाघमनो