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मोक्षशास्त्र ३-इस सूत्रमें आये हुए शब्दोंका अर्थ श्री जैन सिद्धान्त प्रवेशिका मेंसे देख लेना ॥७॥
वेदनीय कर्मके दो भेद
सदसद्ध छ॥८॥ अर्थ-[ सदसधे ] सातावेदनीय और असातावेदनीय ये दो वेदनीयकर्म के भेद हैं।
टीका
वेदनीयकर्मकी दो ही प्रकृतियाँ हैं सातावेदनीय और असातावेदनीय ।
साता नाम सुखका है । इस सुखका जो वेदन अर्थात् अनुभव करावे सो साता वेदनीय है । असाता नाम दुःखका है, इसका जो वेदन अर्थात् अनुभव करावे सो असाता वेदनीयकर्म है ।
शंका-यदि सुख और दुःख कर्मोसे होता है तो कर्मोके नष्ट हो जानेके बाद जीव सुख और दुःखसे रहित हो जाना चाहिये? क्योंकि उसके सुख और दुःखके कारणीभूत कर्मोका अभाव होगया है । यदि यों कहा जावे कि कर्म नष्ट हो जानेसे जीव सुख और दुःख रहित ही हो जाता है तो ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि जीव द्रव्यके निःस्वभाव हो जानेसे अभावका प्रसंग प्राप्त होता है; अथवा यदि दुःखको ही कर्मजनित. माना जावे तो सातावेदनीय कर्मका अभाव हो जायगा, क्योंकि फिर इसका कोई फल नहीं रहता।
समाधान-दुःख नाम की कोई भी वस्तु है वह मोह और असातावेदनीय कर्मके उदयमें युक्त होनेसे होती है, और वह सुख गुणकी विपरीत दशा है किन्तु वह जोवका असली स्वरूप नही है । यदि जीवका स्वरूप माना जावे तो क्षीणकर्मा अर्थात् कर्म रहित जीवोंके भी दुःख होना चाहिये, क्योकि ज्ञान और दर्शनकी तरह कर्मका विनाश होनेपर दुःखका विनाश नही होता। किंतु सुख कर्मसे उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि यह जीवका स्वभाव है और इसीलिये यह कर्मका फल नहीं है । सुखको जीवका स्व.