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मोक्षशास्त्र (५) अज्ञान मिथ्यात्व-१-स्वर्ग, नरक और मुक्ति किसने देखी ? २-स्वर्गके समाचार किसके आये ? सभी धर्म शास्त्र झूठे हैं, कोई यथार्थ ज्ञान बतला ही नहीं सकता, ३-पुण्य-पाप कहाँ लगते हैं अथवा पुण्य-पाप कुछ हैं ही नहीं, ४-परलोकको किसने जाना? क्या किसीके परलोकके समाचार-पत्र या तार आये ?, ५-स्वर्ग नरक आदि सव कथनमात्र है, स्वर्ग-नरक तो यहीं है, यहाँ सुख भोगना तो स्वर्ग है और दुःख भोगना है सो नरक है, ६-हिंसा को पाप कहा है और दयाको पुण्य कहा है सो यह कथनमात्र है, कोई स्थान हिंसा रहित नहीं है, सबमें हिंसा है, कहीं पैर रखनेको स्थान नहीं, जमीन पवित्र है यह पैर रखने देती है, ७ऐसा विचार भी निरर्थक है कि यह भक्ष्य और यह अभक्ष्य है, एकेन्द्रिय वृक्ष तथा अन्न इत्यादि खानेमे और मांस भक्षण करने में अन्तर नहीं है, इन दोनों में जीवहिंसा समान है, ८-भगवानने जीवको जीवका ही आहार बताया है अथवा जगत की सभी वस्तुएं खाने भोगने के लिये ही हैं, सांपबिच्छू, शेर-बन्दर, तिड़ी मच्छर-खटमल आदिक मार डालना चाहिये । इत्यादि यह सभी अभिप्राय अज्ञान मिथ्यात्व है।।
६. ऊपर कहे गये अनुसार मिथ्यात्वका स्वरूप जानकर सब जीवों को गृहीत तथा अगृहीत मिथ्यात्व छोड़ना चाहिये । सब प्रकारके बंधका मूल कारण मिथ्यात्व है। मिथ्यात्वको नष्ट किये बिना-दूर किये बिना अन्य बंधके कारण ( अविरति आदि ) कभी दूर नही होते, इसलिये सबसे पहले मिथ्यात्व दूर करना चाहिये।
१० अविरति का स्वरूप पांच इन्द्रिय और मनके विषय एवं पांच स्थावर और एक त्रसकी हिंसा इन बारह प्रकारके त्यागरूप भाव न होना सो बारह प्रकारकी अविरति है।
जिसके मिथ्यात्व होता है उसके अविरति तो होती ही है, परन्तु मिथ्यात्व छूट जानेपरभी वह कितनेक समय तक रहती है । अविरतिको असंयम भी कहते है। सम्यग्दर्शनप्रगट होनेके बाद देशचारित्रके बलकेद्वारा एकदेशविरति होती है उसे अणुव्रत कहते हैं । मिथ्यात्व छूटनेके बाद तुरंत