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मोक्षशास्त्र उनका पालन करनेसे मिथ्यादर्शन दूर होगा। उन जीवोंकी यह मान्यता पूर्णरूपेण मिथ्या है इसलिये इस सूत्रमें 'मिथ्यादर्शन' पहले बताकर सूचित किया है।
२-इस सूत्र में बंधके कारण जिस क्रमसे दिये हैं उसी क्रमसे वे नष्ट दूर होते हैं, परन्तु यह क्रम भंग नही होता कि पहला कारण विद्यमान हो और उसके वादके कारण दूर हो जाय । उनके दूर करनेका क्रम इसप्रकार है-(१) मिथ्यादर्शन चौथे गुणस्थानमें दूर होता है (२) अविरति पांचवें-छ8 गुणस्थानमे दूर होती है ( ३ ) प्रमाद सातवें गुणस्थानमें दूर होता है ( ४ ) कपाय वारहवेंगुणस्थानमे नष्ट होती है, और (५) योग चौदहवें गुरणस्थानमे नष्ट होता है । वरतुस्थितिके इस नियमको न समझनेसे अज्ञानी पहले बालवत अंगीकार करते हैं और उसे धर्म मानते है; इसप्रकार अधर्मको धर्म माननेके कारण उनके मिथ्यादर्शन और अनतानुबंधी कषायका पोषण होता है । इसलिये जिज्ञासुमोको वस्तुस्थिति के इस नियमको समझना खास-विशेप पावश्यक है । इस नियमको समझकर असत् उपाय छोड़कर पहले मिथ्यादर्शन दूर करने के लिये सम्यग्दर्शन प्रगट करनेका पुरुषार्थ करना योग्य है।
३-मिथ्यात्वादि या जो बंधके कारण हैं वे जीव और अजीवके भेद से दो प्रकारके हैं । जो मिथ्यात्वादि परिणाम जीवमें होते हैं वे जीव हैं, उसे भावबंध कहते हैं और जो मिथ्यात्वादि परिणाम पुद्गलमे होते हैं वे अजीव है, उसे द्रव्यबंध कहते हैं। ( देखो समयसार गाथा ८७-८८) ४. बन्धके पांच कारण कहे उनमें अंतरंग भावोंकी पहचान
करना चाहिये यदि जीव मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योगके भेदोंको बाह्यरूपसे जाने किन्तु अंतरंगमें इन भावोंकी किस्म (जाति) की पहचान न करे तो मिथ्यात्व दूर नही होता । अन्य कुदेवादिकके सेवनरूप गृहीत मिथ्यात्वको तो मिथ्यात्वरूपसे जाने किन्तु जो अनादि अगृहीत मिथ्यात्व है उसे न पहिचाने, तथा बाह्य त्रस स्थावरकी हिंसाके तथा इन्द्रियमनके