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मोक्षशास्त्र अध्याय आठवाँ
भूमिका
पहले अध्यायके प्रथम सूत्र में कहा है कि सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की एकता मोक्षका मार्ग है। दूसरे सूत्र में कहा है कि तत्त्वार्थका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है, उसके बाद चौथे सूत्रमे सात तत्त्वोके नाम बतलाये; इनमेसे जीव, अजीव और प्रास्रव इन तीन तत्त्वोंका वर्णन सातवें अध्याय तक किया। आस्रवके बाद बन्ध तत्त्वका नंबर है। इसीलिये आचार्य देव इस अध्यायमे बन्ध तत्त्वका वर्णन करते है।
बन्धके दो भेद हैं-भावबंध और द्रव्यबंध । इस अध्यायके पहले दो सूत्रोंमे जीवके भावबंधका और उस भावबंधका निमित्त पाकर होनेवाले द्रव्यकर्मके बंधका वर्णन किया है । इसके बाद के सूत्रोमे द्रव्यबधके भेद, उनकी स्थिति और कब छूटते हैं इत्यादि का वर्णन किया है।
बन्धके कारण बतलाते हैं मिथ्यादर्शनाऽविरतिप्रमादकषाययोगा बंधहेतवः॥१॥
अर्थ-[ मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगाः ] मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पाच [बंघहेतवः] बंधके कारण हैं।
टीका १-यह सूत्र बहुत उपयोगी है, यह सूत्र बतलाता है कि संसार किस कारणसे है। धर्ममे प्रवेश करनेकी इच्छा करनेवाले जीव तथा उपदेशक जबतक इस सूत्रका मर्म नहीं समझते तबतक एक बड़ी भूल करते हैं । वह इसप्रकार है-बधके ५ कारणोमेसे सबसे पहले मिथ्यादर्शन दूर होता है और फिर अविरति प्रादि दूर होते हैं, तथापि वे पहले मिथ्यादर्शन को दूर किये बिना अविरतिको दूर करना चाहते हैं और इस हेतुसे उनके माने हुये बालवत आदि ग्रहण करते हैं तथा दूसरोंको भी वैसा उपदेश देते हैं । पुनश्च ऐसा मानते हैं कि ये बालवत प्रादि ग्रहण करनेसे और
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