________________
५९४
मोक्षशास्त्र साकार मन्त्रभेद-हाथ आदिकी चेष्टा परसे दूसरेके अभिप्रायको जानकर उसे प्रगट कर देना सो साकार मन्त्रभेद है।
व्रतधारीके इन दोषोंके प्रति खेद होता है इसीलिये ये अतिचार हैं, किन्तु यदि जीवको उनके प्रति खेद न हो तो वह अनाचार है अर्थात् वहाँ व्रतका प्रभाव ही है ऐसा समझना ॥२६॥
अचौर्याणुव्रतके पाँच अतीचार स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिक
मानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः ॥२७॥
अर्थ-चोरीके लिये चोरको प्रेरणा करना या उसका उपाय बताना, चोरसे चुराई हुई वस्तुको खरीदना, राज्यकी आज्ञाके विरुद्ध चलना, देने, लेनेके बाट तराजू आदि कम ज्यादा रखना, और कीमती वस्तुमें कम कीमतकी वस्तु मिलाकर असली भावसे बेचना ये पाँच अचीर्थाणुव्रतके अतिचार हैं।
टीका इन अतिचारोंरूप विकल्प पुरुषार्थको कमजोरी (-निर्बलता ) से कभी आयें तो भी धर्मीजीव उनका स्वामी नहीं होता, दोषको जानता है परन्तु उसे भला नहीं मानता इसलिये वह दोष अतिचाररूप है अनाचार नही है।
ब्रह्मचर्याणुव्रतके पाँच अतिचार परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमना
नंगक्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशाः॥२८॥
अर्थ-दूसरेके पुत्र पुत्रियोंका विवाह करना-कराना, पतिसहित व्यभिचारिणी स्त्रियोके पास आना जाना, लेन देन रखना, रागभाव पूर्वक वात चीत करना, पतिरहित व्यभिचारिणी स्त्री (वेश्यादि ) के यहाँ जाना