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अध्याय ७ सूत्र २५-२६-३०-३१ आना, लेन देन आदिका व्यवहार रखना, अनंगक्रीड़ा अर्थात् कामसेवनके लिये निश्चित अंगोंको छोडकर अन्य अगोंसे कामसेवन करना और कामसेवनकी तीन अभिलाषा-ये पाँच ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतिचार है ॥२८॥
परिग्रह परिमाण अणुव्रतके पाँच अतिचार क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणा
तिक्रमाः ॥ २६ ॥ अर्थ-[ क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रमाः] क्षेत्र और रहनेके स्थानके परिमाणका उल्लंघन करना, [ हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रमाः ] चाँदी और सोनेके परिमाणका उल्लंघन करना [ धनधान्यप्रमाणातिकमाः ] धन ( पशु आदि ) तथा धान्यके परिमाणका उल्लंघन करना [ दासीदासप्रमाणातिकमाः ] दासी और दासके परिमाणका उल्लघन करना तथा [ कुप्यप्रमाणातिक्रमाः ] वस बर्तन आदिके परिमाणका उल्लंघन करनाये पाँच अपरिग्रह अणुव्रतके अतिचार है ॥२६॥
___ इस तरह पांच अणुव्रतोंके अतिचारोका वर्णन किया, अब तीन गुणवतोके अतिचारोंका वर्णन करते है।
दिखतके पांच अतिचार ऊधिस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तराधानानि ॥३०॥
अर्थ-[ऊर्ध्वव्यतिक्रमः ] मापसे अधिक ऊँचाईवाले स्थलोमे जाना, [ अधः व्यतिक्रमः ] मापसे नीचे ( कुप्रा खान आदि ) स्थानोमे उतरना [ तिर्यक् व्यतिक्रमः ] समान स्थानके मापसे बहुत दूर जाना [ क्षेत्रवृद्धिः ] की हुई मर्यादामे क्षेत्रको बढ़ा लेना और [स्मृत्यंतराधानं] क्षेत्रकी की हुई मर्यादाको भूल जाना ये पाच दिग्वतके अतिचार हैं ॥३०॥
देशव्रतके पांच अतिचार आनयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलक्षेपाः ॥३१॥
अर्थ-[ मानयनं ] मर्यादासे बाहरकी चीजको मंगाना, [प्रेष्यप्रयोगः ] मर्यादासे बाहर नौकर आदिको भेजना [ शब्दानुपातः ] खांसी