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________________ मोक्षशास्त्र सुखरूप मानते हैं, ऐसा मानना कि परसे सुख होता है सो बड़ी भूल है भ्रांति है। जैसे, चर्म-मांस-रुधिरमें जब विकार होता है तब नख ( नाखून ) पत्थर आदिसे शरीरको खुजाता है। वहाँ यद्यपि खुजलानेसे अधिक दुःख होता है तथापि भ्रांतिसे सुख मानता है, उसीप्रकार अज्ञानी जीव परसे सुख दुःख मानता है यह बड़ी भ्रांति-भूल है । ___जीव स्वयं इंद्रियोंके वश हो यही स्वाभाविक दुःख है; यदि उन्हें दुःख न हो तो जीव इंद्रियविषयों में प्रवृत्ति क्यों करता है ? निराकुलता ही सच्चा सुख है। विना सम्यग्दर्शन-ज्ञानके वह सुख नही हो सकता अपने स्वरूपकी भ्रांतिरूप मिथ्यात्व और उसपूर्वक होनेवाला मिथ्याचारित्र ही सर्व दुःखोंका कारण है । दुःख कम हो अज्ञानी उसे सुख मानता है, किन्तु वह सुख नहीं है । सुख दुःखका वेदनका पैदा न होना ही सुख है अथवा जो अनाकुलता है सो सुख है-अन्य नहीं; और यह सुख सम्यग्ज्ञान का अविनाभावी है। ३. प्रश्न-धन संचयसे तो सुख दिखाई देता है तथापि वहाँ भी दुःख क्यो कहते हो ? उत्तर-धनसंचय आदिसे सुख नहीं । एक पक्षीके पास मांसका टुकड़ा पड़ा हो तब दूसरे पक्षी उसे चूटते हैं और उस पक्षीको भी चोंचें मारते हैं, उस समय उस पक्षीको जैसी हालत होती है वैसी हालत धनधान्य आदि परिग्रहधारी मनुष्योंकी होती है। लोग संपत्तिशाली पुरुषको उसी तरह चूटते हैं । धनकी संभाल करनेमे आकुलतासे दुःखी होना पड़ता है, अर्थात् यह मान्यता भ्रमरूप है कि धनसंचयसे सुख होता है। ऐसा मानना कि 'पर वस्तुसे सुख दुःख या लाभ-हानि होती है' यही बड़ी भूल है । परवस्तुमे इस जीवके सुख दुःखका संग्रह किया हुआ नही है कि जिससे वह परवस्तु जीवको सुख दुःख दे।। ४. प्रश्न-हिंसादि पांच पापोंसे विरक्त होनेकी भावना करनेको कहा परंतु मिथ्यात्व तो महापाप है तथापि छोड़नेके लिये क्यों नहीं कहा ? उत्तर-यह अध्याय इसका प्ररूपण करता है कि सम्यग्दृष्टि जीव
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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