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मोक्षशास्त्र
ज्ञानोपयोगका अर्थ है । ज्ञानका साक्षात् तथा परंपरा फल विचारना । यथार्थ ज्ञानसे ही अज्ञानको निवृत्ति और हिताहितकी समझ होती है, इसीलिये यह भी ज्ञानोपयोगका अर्थ है । अतः यथार्थ ज्ञानको अपना हितकारी मानना चाहिये | ज्ञानोपयोगमें जो वीतरागता है वह बन्धका कारण नहीं है किन्तु जो शुभ भावरूप राग है वह बन्धका कारण है ।
( ५ ) संवेग
सदा संसारके दुःखोंसे भोरुताका जो भाव है सो संवेग है; उसमें जो वीतरागभाव है वह बंधका कारण नहीं है किन्तु जो शुभराग है वह बंधका कारण है । सम्यग्दृष्टियोंके जो व्यवहार संवेग होता है वह रागभाव है; जब निर्विकल्प दशामें नही रह सकता तब ऐसा संवेगभाव निरन्तर होता है ।
( ६-७ ) शक्त्यनुसार त्याग तथा तप
१ - त्याग दो तरह का है - शुद्धभावरूप और शुभभावरूप; उसमें जितनी शुद्धता होती है उतने अंश में वीतरागता है और वह बंधका कारण नही है । सम्यग्दृष्टिके शक्त्यनुसार शुभभावरूप त्याग होता है, शक्तिसे कम या ज्यादा नही होता, शुभरागरूप त्यागभाव बंधका कारण है | 'त्याग' का अर्थ दान देना भी होता है ।
२- निज श्रात्माका शुद्ध स्वरूपमें संयमन करनेसे, और स्वरूप विश्रान्त निस्तरंग चैतन्यप्रतपन सो तप है, इच्छाके निरोधको तप कहते है अर्थात् ऐसा होने पर शुभाशुभ भावका जो निरोध सो तप है । यह तप सम्यग्दृष्टि के हो होता है, उसके निश्चयतप कहा जाता है । सम्यग्दृष्टिके जितने अंशमें वीतराग भाव है उतने अंशमें निश्चयतप है और वह बंधका कारण नही है किन्तु जितने अंशमे शुभरागरूप व्यवहार तप है वह बंधका कारण है | मिथ्यादृष्टिक्रे यथार्थं तप नही होता; उसके शुभरागरूप तपको 'बालतप' कहा जाता है । 'बाल' का अर्थ है अज्ञान, मूढ़ । अज्ञानीका तप आदिका शुभभाव तीर्थंकर प्रकृतिके आसूवका कारण हो ही नहीं सकता ।