________________
अध्याय ६ सूत्र २४
५३७ (८) साधु समाधि सम्यग्दृष्टिके साधुके तपमें तथा आत्मसिद्धिमें विघ्न प्राता देखकर उसे दूर करनेका भाव और उनके समाधि बनी रहे ऐसा जो भाव है सो साधु समाधि है; यह शुभराग है। यथार्थतया ऐसा राग सम्यग्दृष्टिके ही होता है, किन्तु उनके वह रागकी भावना नहीं होती।
(९) वैयावृत्त्यकरण वैयावृत्त्यका अर्थ है सेवा । रोगी, छोटी उमरके या वृद्ध मुनियोंकी सेवा करना सो वैयावृत्त्यकरण है। 'साधु समाधि' का अर्थ है कि उसमें साधुका चित्त सतुष्ट रखना और 'वैयावृत्त्यकरण' में तपस्वियोंके योग्य साधन एकत्रित करना जो सदा उपयोगी हों-इस हेतुसे जो दान दिया जावे सो वैयावृत्य है, किन्तु साधुसमाधि नही। साधुओंके स्थानको साफ रखना, दुःखके कारण उत्पन्न हुए देखकर उनके पैर दाबना इत्यादि प्रकार से जो सेवा करना सो भी वैयावृत्त्य है। यह शुभराग है।
(१०-१३) अर्हत्-आचार्य-बहुश्रुत और प्रवचन भक्ति
भक्ति दो तरह की है-एक शुद्धभावरूप और दूसरी शुभभावरूप । सम्यग्दर्शन यह परमार्थ भक्ति अर्थात शुद्धभावरूप भक्ति है। सम्यग्दृष्टिकी निश्चय भक्ति शुद्धात्म तत्त्वकी भावनारूप है; वह शुद्धभावरूप होनेसे बन्ध का कारण नहीं है। सम्यग्दृष्टिके जो शुभभावरूप जो सराग भक्ति होती है, वह पंचपरमेष्ठीकी आराधनारूप है ( देखो श्री हिन्दी समयसार, आस्रव अधिकार गाथा १७३ से १७६ जयसेनाचार्य कृत संस्कृत टीका, पृष्ठ २५०)
१-अहंत और प्राचार्यका पंच परमेष्ठीमें समावेश हो जाता है। सर्वज्ञ केवली जिन भगवान अहंत हैं, वे सम्पूर्ण धर्मोपदेशके विधाता हैं, वे साक्षात् ज्ञानी पूर्ण वीतराग हैं । २-साधु संघमे जो मुख्य साधु हो उनको प्राचार्य कहते हैं, वे सम्यग्दर्शन ज्ञानपूर्वक चारित्रके पालक हैं और दूसरोको उसमे निमित्त होते है, और वे विशेष गुणाढ्य होते हैं। ३-बहुश्रुतका अर्थ 'बहुज्ञानी' 'उपाध्याय' या 'सर्व शास्त्र सम्पन्न होता है । ४सम्यग्दृष्टिकी जो शास्त्रकी भक्ति है सो प्रवचन भक्ति है। इस भक्तिमें
६८