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मोक्षशास्त्र
नरकायुके आस्रवसे जो विपरीत है सो मनुष्यायुके श्रास्रवका कारण है । इस सूत्र में मनुष्यायुके कारणका संक्षेपमें कथन है, उसका विस्तृत वर्णन निम्नप्रकार है
(१) मिथ्यात्वसहित बुद्धिका होना । (२) स्वभावमें विनय होना । (३) प्रकृति में भद्रता होना ।
(४) परिणामों में कोमलता होनी और मायाचारका भाव न होना । (५) श्रेष्ठ आचरणोंमें सुख मानना ।
(६) वेणु की रेखाके समान क्रोधका होना ।
(७) विशेष गुणी पुरुषोंके साथ प्रिय व्यवहार होना ।
(८) थोड़ा आरम्भ और थोड़ा परिग्रह रखना ।
(e) संतोष रखनेमें रुचि करना । (१०) प्राणियोंके घातसे विरक्त होना । (११) बुरे कार्योंसे निवृत्त होना ।
(१२) मनमें जो बात है उसी के अनुसार सरलतासे बोलना ।
(१३) व्यर्थ बकवाद न करना । (१४) परिणामोंमें मधुरताका होना । (१५) सभी लोकोंके प्रति उपकार बुद्धि रखना ।
(१६) परिणामोंमें वैराग्यवृत्ति रखना ।
(१७) किसीके प्रति ईर्ष्याभाव न रखना ।
(१८) दान देनेका स्वभाव रखना । (१६) कपोत तथा पीत लेश्या सहित होना । (२०) धर्मध्यान में मरण होना ।
इत्यादि लक्षणवाले परिणाम मनुष्यायुके आस्रवके कारण हैं । प्रश्न- जिसकी बुद्धि मिथ्यादर्शनसहित हो उसके मनुष्यायुका आस्रव क्यों कहा ?
उचर- - मनुष्य, तियंचके सम्यक्त्व परिणाम होने पर वे कल्पवासी देवकी आयुका बंध करते हैं, वे मनुष्यायुका बंध नहीं करते, इतना बतानेके लिये उपरोक्त कथन किया है ॥ १७ ॥