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मोक्षशास्त्र इत्यादि लक्षणवाला परिणाम हास्यकर्मके आसवका कारण है। (१) विचित्र क्रीड़ा करनेमें तत्परता होना । (२) व्रत-शीलमें अरुचि परिणाम करना । इत्यादि लक्षणवाले परिणाम रतिकर्मके प्रास्रवके कारण हैं। (१) परको अरति उत्पन्न कराना। (२) परकी रतिका विनाश करना । (३) पाप करनेका स्वभाव होना । (४) पापका संसर्ग करना । इत्यादि लक्षणवाले परिणाम अरतिकर्मके प्रास्रवके कारण हैं ।
(१) दूसरेको शोक पैदा कराना (२) दूसरेके शोकमें हर्ष मानना । इत्यादि लक्षणवाले परिणाम शोककर्मके प्रास्रवके कारण हैं।
(१) स्वयंके भयरूप भाव रखना । (२) दूसरेको भय उत्पन्न कराना। इत्यादि लक्षणवाले परिणाम भयकर्मके प्रास्रवके कारण हैं।
भली क्रिया-प्राचारके प्रति ग्लानि आदिके परिणाम होना सो जुगुप्साकर्मके आस्रवका कारण है। (१) झूठ बोलनेका स्वभाव होना । (२) मायाचारमें तत्पर रहना। ' (३) परके छिद्रकी आकांक्षा अथवा बहुत ज्यादा राग होना इत्यादि परिणाम स्त्रीवेदकर्मके आस्रवके कारण हैं। (१) थोड़ा क्रोध होना । (२) इष्ट पदार्थो में आसक्तिका कम होना । (३) अपनी स्त्रीमें संतोष होना । इत्यादि परिणाम पुरुषवेदकर्मके आस्रवके कारण हैं। (१) कषायकी प्रबलता होना। (२), गुह्य इन्द्रियोंका छेदन करना । (३), परस्त्रीगमन करना । इत्यादि परिणाम होना सो नपुंसकवेदके आस्रवका कारण है।
३-'तीव्रता बन्धका कारण है और सर्वजघन्यता बन्धका कारण' नही है' यह सिद्धान्त आत्माके समस्त गुणोमें लागू होता है । आत्मामें होने वाला मिथ्यादर्शनका जो जघन्यसे भी जघन्य भाव होता है वह दर्शन