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मोक्षशास्त्र । ३-इस सूत्र में 'आदि' शब्द है उसमें संयमासंयम, अकामनिर्जरा, और बालतपका समावेश होता है।
संयमासंयम- सम्यग्दृष्टि श्रावकके व्रत ।
अकामनिर्जरा-पराधीनतासे-( अपनी बिना इच्छाके ) भोग उपभोगका निरोध होने पर संक्लेशता रहित होना अर्थात् कपायकी मंदता करना सो अकामनिर्जरा है।
बालतप-मिथ्यादृष्टिके मंद कषायसे होनेवाला तप ।
४- इस सूत्र में 'इति' शब्द है, उसमें अरहन्तका पूजन, बाल, वृद्ध था तपस्वी मुनियोंकी वैयावृत्य करने में उद्यमी रहना, योगको सरलता और विनयका समावेश हो जाता है।
योग-शुभ परिणाम सहित निर्दोष क्रियाविशेषको योग कहते हैं ।
शांति-शुभ परिणामकी भावनासे क्रोधादि कषायमें होनेवाली तीव्रताके अभावको क्षति (क्षमा ) कहते हैं ।
शौच-शुभ परिणाम पूर्वक जो लोभका त्याग है सो शौच है। वीतरागी निर्विकल्प क्षमा और शौचको 'उत्तम क्षमा' और 'उत्तम शौच' कहते है, वह आस्रवका कारण नहीं है। अब अनंत संसारके कारणीभूत दर्शनमोहके आश्रवके कारण कहते हैं। केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादो दर्शनमोहस्य ॥१३॥
अर्थ-[ केवलिश्रुतसंघधर्मदेवावर्णवादः ] केवली, श्रुत, संघ, धर्म और देवका अवर्णवाद करना सो [ दर्शनमोहस्य ] दर्शन मोहनीय कर्मके आश्रवके कारण हैं।
टीका १. अवर्णवाद-जिसमें जो. दोष न हो उसमें उस दोषका आरोपण करना सो अवर्णवाद है।
केवलित्व, मुनित्व और देवत्व ये आत्माकी ही भिन्न भिन्न अवस्था