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मोक्षशास्त्र अर्थ-[प्रधिकरणं] अधिकरण [जीवाऽजीवाः] जीवद्रव्य और अजीवद्रव्य ऐसे दो भेद रूप है; इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि आत्मामें जो कर्मास्रव होता है उसमें दो प्रकारका निमित्त होता है; एक जीव निमित्त और दूसरा अजीव निमित्त ।
टीका १-यहाँ अधिकरणका अर्थ निमित्त होता है। छ8 सूत्र में आस्रव की तारतम्यताके कारणमें 'अधिकरण' एक कारण कहा है। उस अधिकरणके प्रकार बतानेके लिये इस सूत्र में यह बताया है कि जीव अजीव वर्मास्रवमें निमित्त हैं।
२-जीव और अजीवके पर्याय अधिकरण है ऐसा बतानेके लिये सूत्रमें द्विवचनका प्रयोग न कर बहुवचनका प्रयोग किया है। जीव अजीव सामान्य अधिकरण नहीं किन्तु जीव-अजीवके विशेष (-पर्याय ) अधिकरण होते है । यदि जीव अजीवके सामान्यको अधिकरण कहा जाय तो सर्व जीव और सर्व अजीव अधिकरण हों। किंतु ऐसा नहीं होता, क्योंकि जीवअजीवकी विशेष-पर्याय विशेष ही अधिकरण स्वरूप होती है ॥७॥
जीव-अधिकरणके भेद आद्यं संरंभसमारंभारंभयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ॥८॥
अर्थः-[प्राचं ] पहला अर्थात् जीव अधिकरण-आसूव [ संरम्भ समारंभारंभ योग, कृतकारितानुमतकषाय विशेषैः च ] संरंभ-समारंभ-आरंभ, मन-वचन-कायरूप तीन योग, कृत-कारित-अनुमोदना तथा क्रोधादि चार कषायोंकी विशेषता से [ त्रिः त्रिः त्रिः चतुः] ३४३४३४४ [ एकशः ] १०८ भेदरूप है।
टीका ___ सरंभादि तीन भेद हैं, उन प्रत्येकमें मन-वचन-काय ये तीन भेद लगानेसे नव भेद हुये; इन प्रत्येक भेदमे कृत-कारित-अनुमोदना ये तीन भेद