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सध्याय ६ सूत्र ५-६-७ नं. ६ से २५ तककी क्रियाओंमें आत्माका अशुभभाव है । अशुभभावरूप जो सकषाय योग है सो पाप आसवका कारण है, परन्तु जड़ भन, वचन या शरीरकी क्रिया है सो किसी आस्रवका कारण नहीं। भावासवका निमित्त पाकर जड़ रजकरणरूप कर्म जीवके साथ एक क्षेत्रावगाहरूपसे बंधते हैं । इन्द्रिय, कषाय तथा अव्रत कारण है और क्रिया उसका कार्य है ॥ ५ ॥
आस्रवमें विशेषता-(हीनाधिकता ) का कारण तीद्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेरे
भ्यस्तद्विशेषः ॥६॥ अर्थ:-[ तीवमंदज्ञाताजातभावाधिकरण वीर्य विशेषेभ्यः] तीनभाव, मंदभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, अधिकरणविशेष और वीर्यविशेषसे तद्विशेषः ] आसूवमे विशेषता-हीनाधिकता होती है।
टीका तीव्रभाव-प्रत्यात बढे हुये क्रोधादिके द्वारा जो तीव्ररूप भाव होता है वह तीनभाव है।
मंदभाव-कषायोकी मंदतासे जो भाव होता है उसे मंदभाव कहते है।
ज्ञातभाव-जानकर इरादापूर्वक करनेमें आनेवाली प्रवृत्ति ज्ञातभाव है।
अज्ञातभाव-बिनाजानेअसावधानीसे प्रवर्तना सो अज्ञातभाव है। अधिकरण—जिस द्रव्यका आश्रय लिया जावे वह अधिकरण है। वीर्य-द्रव्यकी स्वशक्ति विशेषको वीर्य (-वल ) कहते हैं ॥६॥
अब अधिकरणके भेद बतलाते हैं अधिकरणं जीवाऽजीवाः ॥७॥