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मोक्षशास्त्र (१७) निसर्ग क्रिया--पापके साधनोंके लेने देनेमें सम्मति देना ।
(१८) विदारण क्रियां--पालस्यके वश हो अच्छे काम न करना और दूसरेके दोष प्रगट करना सो विदारण क्रिया है ।
(१९) आज्ञाव्यापादिनी क्रिया-शास्त्रकी प्राज्ञाका स्वयं पालन न करना और उसके विपरीत अर्थ करना तथा विपरीत उपदेश देना सो 'आज्ञाव्यापादिनी क्रिया है।
(२०) अनाकांक्षा क्रिया-उन्मत्तपना या आलस्यके वश हो प्रवचन ( शास्त्रों ) में कही गई आज्ञाओंके प्रति आदर या प्रेम न रखना सो अनाकांक्षा क्रिया है। अब अंतिम पाँच क्रियायें कहते हैं, इनके होनेसे धर्म धारण करने में
विमुखता रहती है (२१) आरम्भ क्रिया-हानिकारक कार्योमें रुकना, छेदना, तोड़ना, भेदना या अन्य कोई वैसा करे तो हर्षित होना सो आरंभ क्रिया है।
(२२) परिग्रह क्रिया-परिग्रहका कुछ भी नाश न हो ऐसे उपायोंमे लगे रहना सो परिग्रह क्रिया है।
(२३) माया क्रिया-मायाचारसे ज्ञानादि गुणोंको छिपाना ।
(२४) मिथ्यादर्शन क्रिया-मिथ्यादृष्टियोंकी तथा मिथ्यात्वसे परिपूर्ण कार्योकी प्रशंसा करना सो मिथ्यादर्शन क्रिया है ।
__(२५) अप्रत्याख्यान क्रिया-जो त्याग करने योग्य हो उसका त्याग न करना सो अप्रत्याख्यान क्रिया है । (प्रत्याख्यानका अर्थ त्याग है, विषयोके प्रति आसक्तिका त्याग करनेके बदले उसमें आसक्ति करना सो अप्रत्याख्यान है)
नोट:-नं. १० की क्रियाके नीचे जो नोट है वह नं० ११ से २५ तककी क्रियामे भी लागू होता है ।