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मोक्षशास्त्र प्रश्न-रागी जीवके आयुके अतिरिक्त सातों कर्मका निरंतर निव होता है तथापि इस सूत्र में शुभपरिणामको पुण्यास्रवका ही कारण और अशुभ परिणामको पापासवका ही कारण क्यों कहा?
उत्तर-यद्यपि संसारी रागी जीवके सातों कर्मका निरंतर आस्रव होता है, तथापि संक्लेश (-अशुभ ) परिणामसे देव, मनुष्य और तिथंच आयुके अतिरिक्त १४५ प्रकृतियोंको स्थिति बढ़ जाती है और मंद (शुभ) परिणामसे उन समस्त कार्योकी स्थिति घट जाती है और उपरोक्त तीन आयुकी स्थिति बढ़ जाती है।
और फिर तीन कषायसे शुभ प्रकृतिका रस तो घट जाता है और असातावेदनीयादिक अशुभ प्रकृतिका रस अधिक हो जाता है । मंद कषाय से पुण्य प्रकृतिमें रस बढ़ता है और पाप प्रकृतिमें रस घटता है; इसलिये स्थिति तथा रस (-अनुभाग ) की अपेक्षासे शुभ परिणामको पुण्यासूव और अशुभ परिणामको पापासव कहा है। ६-शुभ अशुभ कर्मों के बन्धनेके कारणसे शुभ-अशुभयोग
ऐसे भेद नहीं हैं प्रश्न-शुभ परिणामके कारणसे शुभयोग और अशुभ परिणामके कारणसे अशुभयोग है ऐसा माननेके स्थानपर यह मानने में क्या बाधा है कि शुभ अशुभ कर्मोके वन्धके निमित्तसे शुभ-अशुभ भेद होता है ?
उत्तर-यदि कर्मके बन्धके अनुसार योग माना जायगा तो शुभयोग ही न रहेगा, क्योंकि शुभयोगके निमित्तसे ज्ञानावरणादि अशुभ कर्म भी बघते हैं। इसीलिये शुभ-अशुभ कर्म वन्धनेके कारणसे शुभ-अशुभयोग ऐसे भेद नहीं हैं। परन्तु ऐसा मानना न्याय संगत है कि मंद कपायके कारणसे शुभयोग और तीव्र कपायके कारणसे अशुभयोग है।
७-शुभभावसे पापकी निर्जरा नहीं होती
प्रश्न-यह तो ठीक है कि शुभभावसे पुण्यका बन्ध होता है, कितु ऐसा मानने में क्या दोप है कि उससे पापको निर्जरा होती है ?