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मोक्षशास्त्र अध्याय छट्ठा
भूमिका
१-पहले अध्यायके चौथे सूत्रमें सात तत्त्व कहे हैं और यह भी पहले अध्यायके दूसरे सूत्र में कहा है कि उन तत्त्वोंकी जो यथार्थ श्रद्धा है सो सम्यग्दर्शन है। दूसरेसे पांचवें अध्याय पर्यंत जीव और अजीव तत्त्वका वर्णन किया है । इस छ8 अध्याय और सातवें अध्यायमें पालव तत्त्वका स्वरूप समझाया गया है। आस्रवकी व्याख्या पहले की जा चुकी है, जो यहाँ लागू होती है।
२-सात तत्वोंकी सिद्धि ( वृहद्रव्यसंग्रहके ७१-७२ वें पृष्ठके आधारसे )
इस जगतमें जीव और अजीव द्रव्य हैं और उनके परिणमनसे आस्रव, बध, संवर, निर्जरा और मोक्ष तत्त्व होते हैं। इस प्रकार जीव, अजीव, पास्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं।
अब यहाँ शिष्य प्रश्न करता है कि हे गुरुदेव ! (१) यदि जीव तथा अजीव ये दोनों द्रव्य एकांतसे (-सर्वथा ) परिणामी ही हों तो उनके संयोग पर्यायरूप एक ही पदार्थ सिद्ध होता है, और (२) यदि वे सर्वथा अपरिणामी हों तो जीव और अजीव द्रव्य ऐसे दो ही पदार्थ सिद्ध होते है। यदि ऐसा है तो आस्रवादि तत्त्व किस तरह सिद्ध होते है ?
___ श्री गुरु इसका उत्तर देते है-जीव और अजीव द्रव्य 'कथंचित् परिणामी' होनेसे अवशिष्ट पाँच तत्त्वोंका कथन न्याययुक्त सिद्ध होता है ।
(१) अब यह कहा जाता है कि 'कथंचित् परिणामित्व' का क्या मर्थ है ? जैसे स्फटिक यद्यपि स्वभावसे निर्मल है तथापि जपा-पुष्प आदि के सामीप्यसे अपनी योग्यताके कारणसे पर्यायान्तर परिणति ग्रहण करती है। यद्यपि स्फटिकमणि पर्यायमे उपाधिका ग्रहण करती है तो भी निश्चयसे