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मोक्षशास्त्र
उत्तर- - जो पदार्थ स्वयं कार्यरूप न परिणमे, परन्तु कार्यकी उत्पत्ति में अनुकूल होनेका जिसमें आरोप श्रा सके उस पदार्थको निमित्त कारण कहते हैं । जैसे- घटकी उत्पत्ति में कुम्भकार, दंड, चक्र आदि । ( निमित्त वह सच्चा कारण नहीं है --अकारणवत् है क्योंकि वह उपचार - मात्र अथवा व्यवहारमात्र कारण है )
उपादान कारण और निमित्तकी उपस्थितिका क्या नियम है ? ( बनारसी विलास में कथित दोहा - )
- ( १ ) गुरु उपदेश निमित्त बिन, उपादान बलहीन; ज्यों नर दूजे पांव बिन, चलवेको आधीन ॥१॥ प्रश्न – (२) हो जाने था एक ही, उपादान सों काज; थकै सहाई पौन बिन, पानीमांहि जहाज ॥२॥
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प्रश्न
प्रथम प्रश्नका उत्तर-
ज्ञान नैन किरिया चरन, दोऊ शिवमग धार;
उपादान निश्चय जहाँ, तहँ निमित्त व्यौहार ॥३॥ अर्थ —— सम्यग्दर्शन - ज्ञानरूप नेत्र और ज्ञानमें चरण अर्थात् लीनतारूप क्रिया दोनों मिलकर मोक्षमार्ग जानो । उपादानरूप निश्चय कारण जहाँ हो वहाँ निमित्तरूप व्यवहार कारण होता ही है ||३|| भावार्थ - ( १ ) उपादान वह निश्चय अर्थात् सच्चा कारण है, निमित्त तो मात्र व्यवहार अर्थात् उपचार कारण है, सच्चा कारण नही है, इसलिए तो उसे अकारणवत् कहा है । और उसे उपचार ( - श्रारोप ) कारण क्यों कहा कि वह उपादानका कुछ कार्य करते कराते नही, तो भी कार्यके समय उनकी उपस्थितिके कारण उसे उपचारमात्र कारण कहा है । (२) सम्यग्ज्ञान और ज्ञानमें लीनताको मोक्षमार्ग जानो ऐसा कहा उसीमे शरीराश्रित उपदेश उपवासादिक क्रिया और शुभरागरूप व्यवहारको मोक्षमार्ग न जानो वह बात आ जाती है ।
प्रथम प्रश्नका समाधान -
उपादान निज गुरण जहाँ तहँ निमित्त पर होय; भेदज्ञान प्रमाण विधि, विरला बूझे कोय ||४||