________________
४७८
मोक्षशास्त्र ये छह सामान्यगुण मुख्य हैं इनके अतिरिक्त भी दूसरे सामान्य गुण हैं। इस तरह गुणों द्वारा द्रव्यका स्वरूप विशेष स्पष्टतासे जाना जा सकता है।
छह कारक (-कारण ) [ लघु जैन सि० प्रवेशिकासे 1
(१) कर्चा:-जो स्वतंत्रतासे (-स्वाधीनतासे ) अपने परिणामको करे सो कर्ता है। प्रत्येक द्रव्य अपने में स्वतंत्र व्यापक होनेसे अपने ही परिणामोंका कर्ता है।
(२) कर्म (-कार्य);-कर्ता जिस परिणामको प्राप्त करता है वह परिणाम उसका कर्म है। प्राप्य, विकार्य और निर्वयं ऐसा, व्याप्य लक्षणवाला प्रत्येक द्रव्यका परिणामरूप कर्म होता है। [ उस कर्म (-कार्य ) में प्रत्येक द्रव्य स्वयं अन्तर्व्यापक होकर, आदि, मध्य और अन्तमें व्याप्त होकर उसे ग्रहण करता हुआ, उस-रूप परिणमन करता हुआ, और उसं-रूप उत्पन्न होता हुआ, उस परिणामके कर्ता हैं।
(३) करणः-उस परिणामका साधकतम अर्थात् उत्कृष्ट साधनको करण कहते हैं।
(४) संप्रदान-कर्म (-परिणाम-कार्य ) जिसे दिया जाय या जिसके लिये किया जाता है उसे संप्रदान कहते हैं ।
(५) अपादान-जिसमें से कम किया जाता है वह ध्रुव वस्तुको अपादान कहते हैं।
(६) अधिकरण—जिसमे या जिसके आधारसे कर्म किया जाता है उसे अधिकरण कहते हैं।
सर्व द्रव्योंकी प्रत्येक पर्यायमें यह छहों कारक एक साथ वर्तते हैं, इसलिये आत्मा और पुद्गल शुद्धदशामें या अशुद्धदशामें स्वयं ही छहों कारकरूप परिणमन करते हैं और अन्य किसी कारकों (-कारणों ) की अपेक्षा नही रखते हैं। (पंचास्तिकाय गाथा ६२ सं० टीका )
प्रश्न-कार्य कैसे होता है ? उचर-कारणानुविधायित्वादेव कार्याणां' कारणानुविधायीनि