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________________ ४७५ अध्याय ५ उपसंहार कर्मों के कथनसे छहों द्रव्योंकी सिद्धि कम यह पुद्गलकी अवस्था है, जीवके विकारी भावके निमित्तसे वह जीवके साथ रहे हुये हैं; कितनेक कर्म बंधरूपसे स्थिर हुए है उनको अधर्मास्तिकायका निमित्त है। प्रतिक्षण कर्म उदयमें आकर झड़ जाते हैं। झड़ जानेमें क्षेत्रातर भी होता है उसमें, उसे धर्मास्तिकायका निमित्त है। यह कहा जाता है कि कर्मको स्थिति ७० कोड़ा कोडि सागर और कमसे कम अन्तर्मुहूर्त की है, इसमें काल द्रव्यकी अपेक्षा हो जाती है। बहुतसे कर्म परमाणु एक क्षेत्रमें रहते हैं, इसमें आकाशद्रव्यकी अपेक्षा है। इस तरह छह द्रव्य सिद्ध हुए। द्रव्योंकी स्वतंत्रता इससे यह भी सिद्ध होता है कि जीवद्रव्य और पुद्गलद्रव्य (-कर्म) .. दोनों एकदम पृथक् २ पदार्थ हैं और दोनों अपने अपने में स्वतंत्र हैं, कोई एक दूसरेका कुछ ही नहीं करते। मदि जीव प्रौर कर्म एक हो जाय तो इस 'जगत्मे छहद्रव्य ही नहीं रह सकते; जीव और कर्म सदा पृथक् ही है। द्रव्योंका स्वभाव 'अपने अमर्यादित अनन्त गुरमोंमें अनादि अनन्त रहकर प्रतिसमय बदलनेका है। सभी द्रव्य अपनी शक्तिसे स्वतंत्ररूपसे अनादि अनन्त रहकर स्वयं अपनी अवस्था बदलते हैं । जीवकी अवस्था जीव बदलाता है, पुद्गलकी हालत पुद्गल बदलाता है। पुद्गलका जीव कुछ नहीं करता और न पुद्गल जीवका कुछ करता है। व्यवहारसे भी किसीका परद्रव्यमें कर्तापना नही है घीका घड़ाके समान व्यवहारसे कर्तापनेका कथन होता है जो सत्यार्थ नहीं है। उत्पाद-व्यय-ध्रव __ द्रव्यका और द्रव्यकी अवस्थाओंका कोई कर्ता नही है । यदि कोई कर्ता हो तो उसने द्रव्योंको किस तरह बनाया ? किसमेसे बनाया ? वह कर्ता स्वयं किसका बना ? जगत्में छहो द्रव्य स्व स्वभावसे ही हैं, उनका कोई कर्ता नहीं है। किसी भी नवीन पदार्थकी उत्पत्ति ही नहीं होती। किसी भी प्रयोगसे नये जीवकी या नये परमाणुकी उत्पत्ति नही हो सकती; किन्तु जैसा पदार्थ हो वैसा ही रहकर उनमें अपनी अवस्थाओंका रूपांतर
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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