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मोक्षशास्त्र
नहीं है किन्तु कालकी अपेक्षासे छोटे बड़ेपनकी बात है, यदि काल द्रव्यकी अपेक्षा न लें तो यह नहीं कह सकते कि यह छोटा, यह बड़ा, यह बालक, यह युवा या वह वृद्ध है । पुरानी नई अवस्था बदलती रहती है इसी परसे कालद्रव्यका अस्तित्व निश्चित होता है ॥ ४ ॥
कहीं जीव और शरीर स्थिर होता है और कहीं गति करता है । स्थिर होते समय तथा गमन करते समय दोनों समय वह आकाशमें ही है, अर्थात् प्रकाश परसे उसका गमन या स्थिर रहनेरूप निश्चित नहीं हो सकता । गमनरूप दशा और स्थिर रहनेरूप दशा इन दोनोंकी पृथक् पृथक् पहचान करनेके लिये उन दोनों दशामें भिन्न २ निमित्तरूप ऐसे दो द्रव्यों को पहचानना होगा | धर्मद्रव्यके निमित्तद्वारा जीव- पुद्गलका गमन पहचाना जा सकता है और अधर्मद्रव्यके निमित्त द्वारा स्थिरता पहचानी जा सकती है । यदि ये धर्म और अधर्मद्रव्य न हों तो गमन और स्थिरताके भेदको नहीं जाना जा सकता ।
यद्यपि धर्म-अधर्मद्रव्य जीव पुद्गलको कही गति या स्थिति करनेमें मदद करते नहीं हैं, परन्तु एक द्रव्यके भावको अन्य द्रव्यकी अपेक्षाके विना पहचाना नहीं जा सकता । जीवके भावको पहचाननेके लिये अजीवको अपेक्षा की जाती है, जो जाने सो जीव- ऐसा कहनेसे ही "ज्ञानत्वसे रहित जो अन्य द्रव्य है वे जीव नही हैं" इसप्रकार अजीव की अपेक्षा आ जाती है व ऐसा बताने पर आकाशकी अपेक्षा हो जाती है कि 'जीव अमुक जगह है' । इसप्रकार छहों द्रव्योमें समझ लेना । एक आत्मद्रव्यका निर्णय करनेपर छहों द्रव्य मालूम होते हैं; यह ज्ञानको विशालता है और इससे यह सिद्ध होता है कि सर्वद्रव्योंको जान लेना ज्ञानका स्वभाव है । एक द्रव्यको सिद्ध करने से छहों द्रव्य सिद्ध हो जाते है; इसमें द्रव्यकी पराधीनता नही है; परन्तु ज्ञानकी महिमा है । जो पदार्थ होता है वह ज्ञानमे अवश्य जाना जाता है । पूर्ण ज्ञानमें जितना जाना जाता है इस जगत में उसके अतिरिक्त अन्य कुछ नही है । पूर्ण ज्ञानमें छह द्रव्य बतलाये हैं, छह द्रव्यसे अधिक अन्य कुछ नही है ।