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मोक्षशाख (४) अब यह टोपी दुहरी मुड़ जाती है जब टोपी सीधी थी तव आकाशमें थी और जब मुड़ गई तब भी आकाश में ही है, अतः आकाशके निमित्त द्वारा टोपीका दुहरापन नहीं जाना जा सकता । तो फिर टोपीकी दुहरे होनेकी क्रिया हुई अर्थात् पहले उसका क्षेत्र लम्बा था, अब वह थोड़े क्षेत्रमें रही हुई है-इस तरह टोपी क्षेत्रांतर हुई है और क्षेत्रांतर होनेमे जो वस्तु निमित्त है वह धर्मद्रव्य है।
(५) अब टोपी टेढ़ी मेढी स्थिर पड़ी है। तो यहाँ स्थिर होनेमें उसे निमित्त कौन है ? आकाशद्रव्य तो मात्र स्थान देने में निमित्त है। टोपी चले या स्थिर रहे इसमें आकाशका निमित्त नहीं है। जब टोपीने सीधी दशामेसे टेढ़ी अवस्थारूप होनेके लिये गमन किया तब धर्मद्रव्यका निमित्त था; तो अब स्थिर रहनेकी क्रियामें उसके विरुद्ध निमित्त चाहिए । गतिमें धर्मद्रव्य निमित्त था तो अब स्थिर रहनेमे अधर्मद्रव्य निमित्तरूप है।
(६) टोपी पहले सीधी थी इस समय टेढ़ी है और वह अमुक समय तक रहेगी-ऐसा जाना, वहाँ 'काल' सिद्ध हो गया । भूत, वर्तमान, भविष्य अथवा पुराना-नया, दिवस घंटा इत्यादि जो भेद होते है वे भेद किसी एक मूल वस्तुके बिना नही हो सकते, अतः भेद-पर्यायरूप व्यवहारकालका आधार-कारण-निश्चय कालद्रव्य सिद्ध हुआ । इसतरह टोपी परसे छह द्रव्य सिद्ध हुये।
इन छह द्रव्योंमेंसे एक भी द्रव्य न हो तो जगत्का व्यवहार नही चल सकता । यदि पुद्गल न हो तो टोपी ही न हो । यदि जीव न हो तो टोपीके अस्तित्वका निश्चय कौन करे? यदि आकाश न हो तो यह पहचान नही हो सकती कि टोपी कहाँ है ? यदि धर्म और अधर्म द्रव्य न हों तो टोपीमे हुआ फेरफार (क्षेत्रांतर और स्थिरता ) मालूम नहीं हो सकता और यदि काल द्रव्य न हो तो पहले जो टोपी सीधी थी वही इस समय टेढी है, ऐसा पहले और पीछे टोपीका अस्तित्व निश्चित नही हो सकता, अतः टोपीको सिद्ध करनेके लिये छहों द्रव्योको स्वीकार करना पड़ता है। जगतकी किसी भी एक वस्तुको स्वीकार करनेसे व्यक्तरूपसे या अव्यक्तरूपसे छहो द्रव्योंका स्वीकार हो जाता है।