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अध्याय ५ उपसंहार जितने भागमें अन्य पांचों द्रव्य रहते है उतने भागको 'लोकाकाश' कहा जाता है और जितना भाग अन्य पांचों द्रव्योंसे रिक्त है उसे 'अलोकाकाश' कहा जाता है । खाली स्थानका अर्थ होता है 'अकेला अाकाश ।'
६-काल-असंख्य काल द्रव्य हैं । इस लोकके असंख्य प्रदेश हैं; उस प्रत्येक प्रदेशपर एक एक काल द्रव्य रहा हुआ है। असंख्य कालाणु हैं वे सब एक दूसरेसे अलग हैं । वस्तुके रूपान्तर ( परिवर्तन) होने में यह द्रव्य निमित्तरूपसे जाना जाता है। [ जीवद्रव्यके अतिरिक्त यह पांचों द्रव्य सदा अचेतन है, उनमें ज्ञान, सुख-या दुःख कभी नहीं हैं।] - इन छह द्रव्योंको सर्वज्ञके अतिरिक्त अन्य कोई भी प्रत्यक्ष नहीं जान सकता । सर्वज्ञदेवने ही इन छह द्रव्योंको जाना है और उन्हीने उनका यथार्थ स्वरूप कहा है। इसीलिये सर्वज्ञके सत्यमार्गके अतिरिक्त अन्य कोई मतमें छह द्रव्योंका स्वरूप हो ही नहीं सकता; क्योकि दूसरे अपूर्ण ( अल्पज्ञ ) जीव उन द्रव्योको नहीं जान सकते; इसलिये छह द्रव्योके स्वरूपकी यथार्थ प्रतीति करना चाहिये।
टोपीके दृष्टांतसे छह द्रव्योंकी सिद्धि (१) देखो यह कपड़ेकी टोपी है, यह अनन्त परमाणुओंसे मिलकर बनी है और इसके फट जाने पर परमाणु अलग हो जाते हैं। इसतरह मिलना और बिछुड़ना पुद्गलका स्वभाव है । पुनश्च यह टोपी सफेद है, दूसरी कोई काली, लाल आदि रंगकी भी टोपी होती है; रंग पुद्गल द्रव्य का चिह्न है, इसलिये जो दृष्टिगोचर होता है वह पुद्गल द्रव्य है।
(२) 'यह टोपी है पुस्तक नहीं' ऐसा जाननेवाला ज्ञान है और ज्ञान जीवका चिह्न है, अतः जीव भी सिद्ध हुआ ।
(३) अब यह विचारना चाहिये कि टोपी कहाँ रही हुई है ? यद्यपि निश्चयसे तो टोपी टोपीमे ही है, किन्तु टोपी टोपीमें ही है यह कहनेसे टोपीका बराबर ख्याल नही आ सकता, इसलिये निमित्तरूपसे यह पहचान कराई जाती है कि "अमुक स्थानमे टोपी रही हुई है।" जो स्थान कहा जाता है वह आकाश द्रव्यका अमुक भाग है, अतः आकाशद्रव्य सिद्ध हुआ।