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________________ ४७० मोक्षशास्त्र इसप्रकार जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन छह द्रव्यों की सिद्धि की । इन छहके अतिरिक्त सातवाँ कोई द्रव्य है ही नही, और इन छहमेंसे एक भी न्यून नही है, बरावर छह ही द्रव्य हैं और ऐसा माननेसे ही यथार्थ वस्तुकी सिद्धि होती है। यदि इन छहके अतिरिक्त सातवाँ कोई द्रव्य हो तो यह बताओ कि उसका क्या कार्य है ? ऐसा कोई कार्य नही है जो इन छह से बाहर हो, इसलिये सातवां द्रव्य नही है । हीं थदि इन छह द्रव्योंमेसे एक भी कम हो तो यह बताओ कि उसका कार्य कौन करेगा ? छह द्रव्योंमेंसे एक भी द्रव्य ऐसा नही कि जिसके बिना विश्व नियम चल सके छह द्रव्य संबंधी कुछ जानकारी १-जीव-इस जगतमें अनन्त जीव हैं। ज्ञातृत्त्व चिह्नके (विशेष गुणके ) द्वारा जीव पहचाना जाता है । क्योंकि जीवके अतिरिक्त अन्य किसी पदार्थ में ज्ञातृत्व नही है । जीव अनन्त हैं, वे सभी एक दूसरेसे बिल्कुल भिन्न है। सदैव जाननेवाले है। २-पुद्गल-इस जगतमे अनन्तानन्त पुद्गल हैं । वह अचेतन है। स्पर्श, रस, गंध और वर्णके द्वारा पुद्गल पहचाना जाता है, क्योंकि पुदूल के सिवाय अन्य किसी पदार्थमे स्पर्श, रस, गन्ध या वर्ण नही है । जो इन्द्रियोके द्वारा जाने जाते है वे सब पुद्गलके बने हुए स्कंध है। ३-धर्म-यहाँ धर्म कहनेसे आत्माका धर्म नहीं किन्तु 'धर्म' नामका द्रव्य समझना चाहिये । यह द्रव्य एक अखण्ड और समस्त लोकमें व्याप्त है । जीव और पुद्गलोंके गमन करते समय यह द्रव्य निमित्तरूपसे पहचाना जाता है। ४-अधर्म-यहाँ अधर्म कहनेसे आत्माका दोष नही किंतु अधर्म नामका द्रव्य समझना चाहिये । यह एक अखण्ड द्रव्य है जो समस्त लोकमें व्याप्त है । जीव और पुद्गल गकमन रके जब स्थिर होते हैं तब यह द्रव्य निमित्तरूपसे जाना जाता है। ५-आकाश-यह एक अखंड सर्वव्यापक द्रव्य है । समस्त पदार्थोको स्थान देनेमे यह द्रव्य निमित्तरूपसे पहचाना जाता है । इस द्रव्यके
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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