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अध्याय ५ उपसंहारा
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चार द्रव्य तो सिद्ध हो चुके हैं अब बाकीके दो द्रव्य सिद्ध करना है । यह कहने में धर्म द्रव्य सिद्ध हो जाता है कि 'एक ग्रामसे दूसरे ग्राम आया ।' एक ग्रामसे दूसरे ग्राम आया इसका क्या अर्थ है ? यानि जीव और शरीर के परमाणुओं की गति हुई, एक क्षेत्रसे दूसरा क्षेत्र बदला । अब इस क्षेत्र बदलनेके कार्य में किस द्रव्यको निमित्त कहेगे ? क्योंकि ऐसा नियम है कि प्रत्येक कार्य में उपादान और निमित्त कारण होता ही है । यह विचार करते है कि जीव और पुलोंको एक ग्रामसे दूसरे ग्राम आनेमें निमित्त कोनसा द्रव्य है । प्रथम तो 'जीव और पुद्गल ये उपादान हैं' उपादान स्वयं निमित्त नही कहलाता । निमित्त तो उपादानसे भिन्न ही होता है, इसलिये जीव या पुद्गल ये क्षेत्रांतरके निमित्त नही । काल द्रव्य तो परिणमनमे निमित्त है अर्थात् पर्याय बदलने में निमित्त है किंतु काल द्रव्य क्षेत्रांतरका निमित्त नही है; श्राकाश द्रव्य समस्त द्रव्योंको रहनेके लिये स्थान देता है जब ये पहले क्षेत्रमें थे तब भी जीव और पुद्गलोंको प्राकाश निमित्त था और दूसरे क्षेत्रमे भी वही निमित्त है, इसलिये आकाशको भी क्षेत्रांतरका निमित्त नही कह सकते । तो फिर यह निश्चित होता है कि क्षेत्रतिररूप जो कार्य हुआ उसका निमित्त इन चार द्रव्योंके अतिरिक्त कोई अन्य द्रव्य है । गति करनेमें कोई एक द्रव्य निमित्तरूपसे है किन्तु वह कोनसा द्रव्य है इसका जीवने कभी विचार नहीं किया, इसीलिये उसकी खबर नही है । क्षेत्रांतर होनेमें निमित्तरूप जो द्रव्य है उस द्रव्यको 'धर्मद्रव्य' कहा जाता है । यह द्रव्य भी अरूपी और ज्ञान रहित है ।
६ - अधर्मद्रव्य
जिस तरह गति करनेमें धर्म द्रव्य निमित्त है उसीतरह स्थिति में उससे विरुद्ध प्रधर्मद्रव्य निमित्तरूप है । "एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्रमे श्राकर स्थिर रहा" यहाँ स्थिर रहनेमें निमित्त कौन है ? आकाश स्थिर रहनेमें निमित्त नही है; क्योकि आकाशका निमित्त तो रहनेके लिये है, गति के समय भी रहने में आकाश निमित्त था, इसीलिये स्थितिका निमित्त कोई अन्य द्रव्य चाहिये वह द्रव्य 'अधर्म द्रव्य' है । यह भी प्ररूपी और ज्ञान रहित है ।