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मोक्षशास्त्र
३ - आकाशद्रव्य
लोग श्रव्यक्तरूपसे यह तो स्वीकार करते हैं कि 'आकाश' नामका द्रव्य है । दस्तावेजोंमें ऐसा लिखते है कि "अमुक मकान इत्यादि स्थानका आकार से पाताल पर्यन्त हमारा हक है" अर्थात् यह निश्चय हुआ कि श्राकाशसे पाताल रूप कोई एक वस्तु है । यदि आकाशसे पाताल पर्यन्त कोई वस्तु ही न हो तो ऐसा क्यों लिखा जाता है कि 'आकाशसे पाताल तकका हक (-दावा ) हे ? वस्तु है इसलिये उसका हक माना जाता है । आकाशसे पाताल तक अर्थात् सर्वव्यापी रही हुई वस्तुको 'आकाश द्रव्य' कहा जाता है । यह द्रव्य ज्ञान रहित और अरूपी है, उसमे रङ्ग, रस वगैरह नहीं हैं |
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४ - कालद्रव्य
जीव, पुद्गल और आकाश द्रव्यको सिद्ध किया; अब यह सिद्ध किया जाता है कि 'काल' नामकी एक वस्तु है । लोग दस्तावेज कराते और उसमें लिखाते है कि " यावत् चन्द्रदिवाकरो जब तक सूर्य और चन्द्र रहेगे तब तक हमारा हक है ।" इसमें काल द्रव्यको स्वीकार किया । इसी समय ही हक है ऐसा नही किन्तु काल जैसा बढ़ता जाता है उस समस्त कालमें हमारा हक है; इसप्रकार कालको स्वीकार करता है | "हमारा वैभव भविष्यमे ऐसा ही बना रहो"- -- इस भावना में भी भविष्यत कालको भी स्वीकार किया, और फिर ऐसा कहते हैं कि 'हम तो सात पैढ़ीसे सुखी हैं, वहाँ भी भूतकाल स्वीकार करता है । भूतकाल, वर्तमानकाल और भविष्यतकाल ये समस्त भेद निश्चय कालद्रव्यकी व्यवहार पर्याय के हैं । यह काल द्रव्य भी श्ररूपी है और उसमे ज्ञान नही है ।
इस तरह जीव, पुद्गल, आकाश और काल द्रव्यकी सिद्धि हुई । अब धर्म और अधर्म ये दो द्रव्य शेष रहे ।
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धर्मद्रव्य
जीव इस धर्म द्रव्यको भी श्रव्यक्तरूपसे स्वीकार करता है । छहों द्रव्योंके अस्तित्वको स्वीकार किये विना कोई भी व्यवहार नही चल सकता । श्राना, जाना, रहना इत्यादि सभीमे छहों द्रव्योंकी अस्ति सिद्ध हो जाती है ।