________________
૪૬૪
मोक्षशास्त्र और तीसरी अथवा पहली, दूसरी और चौथी बातें एक साथ देखी जाती हैं। किन्तु तीसरी, चौथी और पहली अथवा तीसरी चौथी और दूसरी यह बातें कभी एक साथ नहीं होती। __अब हमें एक एक बारेमें क्रमशः देखना चाहिये।
म. आकाश की सिद्धि-३ जगतकी प्रत्येक वस्तुको अपना क्षेत्र होता है अर्थात् उसे लम्बाई. चौड़ाई होती है यानी उसे अपना अवगाहन होता है । वह अवगाहन अपना उपादान कारण हुआ और उसमें निमित्तकारणरूप दूसरी वस्तु होती है।
निमित्तकारणरूप दूसरी वस्तु ऐसी होनी चाहिये कि उसके साथ उपादान वस्तु अवगाहनमें एकरूप न हो जाय । उपादान स्वय अवगाहनरूप है तथापि अवगाहनमें जो परद्रव्य निमित्त है, उससे वह विभिन्नरूपमें कायम रहे, अर्थात् परमार्थसे प्रत्येक द्रव्य स्व-स्वके अवगाहनमें ही है।
पुनश्च, वह वस्तु जगतके समस्त पदार्थोको एक साथ निमित्त कारण चाहिये, क्योंकि जगत्के समस्त पदार्थ अनादि हैं और सभीके अपना-अपना क्षेत्र है, वह उसका अवगाहन है। अवगाहनमें निमित्त होने वाली वस्तु समस्त अवगाहन लेनेवाले द्रव्योंसे बड़ी चाहिये। जगतमें ऐसी एक वस्तु अवगाहनमे निमित्तकारणरूप है, उसे 'आकाशद्रव्य' कहा जाता है।
__और फिर जगतमें सूक्ष्म, स्थूल ऐसे दो प्रकारके तथा रूपी और अरूपी ऐसे दो प्रकारके पदार्थ हैं। उन उपादानरूप पदार्थोके निमित्तरूप से अनुकूल कोई परद्रव्य होना चाहिये और उसका उपादानसे अभाव चाहिये; और फिर अबाधित अवगाहन देनेवाला पदार्थ अरूपी ही हो सकता है । इस तरह आकाश एक, सर्व व्यापक, सबसे बड़ा, अरूपी और अनादि द्रव्यरूप सिद्ध होता है।
__ यदि आकाश द्रव्यको न माना जावे तो द्रव्यमें स्त्र क्षेत्रत्व नही रहेगा और ऊपर नीचे-यहाँ-वहाँ ऐसा निमित्तका ज्ञान करानेवाला स्थान नहीं
,