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अध्याय ५ उपसंहार और निमित्त दोनोंका यथार्थ ज्ञान नही कर सकता इतना ही नहीं किन्तु यदि उपादानको न माने तो निमित्तको भी नहीं मान सकेंगे और निमित्त को न मानें तो वह उपादनको नहीं मान सकेगा। दोनोंके यथार्थ रूपसे माने बिना यथार्थ ज्ञान नहीं हो सकेगा; इस तरह उपादान और निमित्त दोनोंको शून्यरूपसे अर्थात् नहीं होने रूपसे मानना पड़ेगा और इस तरह समस्त पदार्थोको शून्यत्व प्राप्त होगा, किन्तु ऐसा बन ही नही सकता।
व. कालकी सिद्धि-४ द्रव्य कायम रहकर एक अवस्था छोड़कर दूसरी अवस्था रूपसे होता है, उसे वर्तना कहते है। इस वर्तनामें उस वस्तुकी निज शक्ति उपादान कारण है, क्योकि यदि निजमें वह शक्ति न हो तो स्वयं न परिणमे । पहिले यह सिद्ध किया है कि किसी भी कार्यके लिये दो कारण स्वतंत्र रूपसे होते हैं। इसीलिये निमित्त कारण संयोगरूपसे होना चाहिये। अतः उस वर्तनामे निमित्त कारण एक वस्तु है उस वस्तुको 'काल द्रव्य' कहा जाता है और फिर निमित्त अनुक्कल होता है। सबसे छोटा द्रव्य एक रजकरण है, इसलिये उसे निमित्त कारण भी एक रजकरण बराबर चाहिये। अतः यह सिद्ध हुआ कि कालाणु एक प्रदेशी है ।
प्रश्न-~यदि काल द्रव्यको अणुप्रमाण न माने और बड़ा माने तो क्या दोष लगेगा?
उत्तर-उस अणुके परिणमन होनेमें छोटेसे छोटा समय न लगकर अधिक समय लगेगा और परिणमन शक्तिके अधिक समय लगेगा तो निज शक्ति न कहलायेगी। पुनश्च अल्पसे अल्प काल एक समय जितना न होनेसे काल द्रव्य बड़ा हो तो उसकी पर्याय बड़ी होगी। इस तरह दो समय, दो घटे, क्रमशः न होकर एक साथ होगे जो बन नही सकते। एक एक समय करके कालको बड़ा माने तो ठीक है किन्तु एक साथ लम्बा काल (अधिक समय) नही हो सकता। यदि ऐसा हो तो किसी भी समय की गिनतो न हो सके।
प्रश्न-यह सिद्ध हुआ कि कालद्रव्य एक प्रदेशी है उससे बड़ा ५६