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________________ ४६० मोक्षशास्त्र सकता है, किसी दूसरी जगह उसका भाग अलग होकर रह सकता है, ज्ञानवस्तु इन्द्रियगम्य नही किन्तु ज्ञानगम्य है उसके टुकड़े या हिस्से नहीं हो सकते क्योंकि वह असंयोगी है, और सदा अपने द्रव्य-क्षेत्र (आकार) काल और भावोंसे अपनेमें अखंडित रहता है। और इसलिये उसका कोई भाग अलग होकर अन्यत्र नहीं रह सकता तथा किसीको दे नही सकता; (इ) यह संयोगी पदार्थसे शरीर बना है, उसके टुकड़े हिस्से हो सकते है, परंतु ज्ञान नही मिलता; किसी संयोगसे कोई अपना ज्ञान दूसरेको दे नहीं सकता किन्तु अपने अभ्याससे ही ज्ञान बढ़ा सकनेवाला, असंयोगी और निजमें से आनेवाला होनेसे ज्ञान स्व के ही-आत्माके ही प्राश्रित रहने वाला है। (७) 'ज्ञान' गुण वाचक नाम है, वह गुणी बिना नही होता इसलिये ज्ञान गुणकी धारण करनेवाली ऐसी एक वस्तु है । उसे जीव, आत्मा, सचेतन पदार्थ, चैतन्य इत्यादि नामोंसे पहिचाना जा सकता है। इस तरह जीव पदार्थ ज्ञान सहित, असंयोगी, अरूपी और अपने ही भावोंका अपने में का-भोक्ता सिद्ध हुआ और उससे विरुद्ध शरीर ज्ञान रहित, अजीव, संयोगी रूपी पदार्थ सिद्ध हुआ; वह पुद्गल नामसे पहचाना जाता है। शरीर के अतिरिक्त जो जो पदार्थ दृश्यमान होते हैं वे सभी शरीरकी तरह पुगल ही है । और वे सब पुद्गल सदा अपने ही भावोका अपने में कर्ताभोक्ता हैं जीवसे सदा भिन्न होने पर भी अपना कार्य करने में सामर्थ्यवान है। (८) पुनश्च ज्ञानका ज्ञानत्व कायम रहकर उसमे हानि वृद्धि होती है। उस कमावेशीको ज्ञानकी तारतम्यतारूप अवस्था कहा जाता है। शास्त्रकी परिभाषामे उसे 'पर्याय' कहते हैं। जो नित्य ज्ञानत्व स्थिर रहता है सो 'ज्ञानगुण' है । (६) शरीर संयोगी सिद्ध हुआ इसलिये वह वियोग सहित ही होता है। पुनश्च शरीरके छोटे २ हिस्से करें तो कई हों और जलाने पर राख हो। इसीलिये यह सिद्ध हुआ कि शरीर अनेक रजकरणोंका पिंड है। जैसे जीव और ज्ञान इंद्रियगम्य नहीं किंतु विचार (Reasoning) गम्य है उसी तरह पुद्गलरूप अविभागी रजकण भी इंद्रियगम्य नही किंतु ज्ञानगम्य है। (१०) शरीर यह मूल वस्तु नही किन्तु अनेक रजकरणोका पिंड है
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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