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अध्याय ५ उपसंहार वाले ने इच्छा की उसी समय खून बन्द हो जाता ।
(३) यदि वह दोनों एक ही वस्तु होती तो रक्त तुरंत ही बंद हो जाता, इतना ही नही किन्तु ऊपर नं० (४-५ ) में बताये गये माफिक भावना करनेके कारण शरीरका वह भाग भी नही सडता, इसके विपरीत जिस समय इच्छा की उस समय तुरन्त ही आराम हो जाता। किंतु दोनों पृथक होनेसे वैसा नही होता।
(४) ऊपर नं० (६-७) में जो हकीकत बतलाई है वह सिद्ध करती है कि जिसका हाथ सड़ा है वह और उसके सगे सम्बन्धी सब स्वतंत्र पदार्थ है। यदि वे एक ही होते तो वे उस मनुष्यका दुःख एक होकर भोगते और वह मनुष्य अपने दुःखका भाग उनको देता अथवा घनिष्ट सम्बन्धीजन उसका दुःख लेकर वे स्वयं भोगते, किन्तु ऐसा नही बन सकता, अतः यह सिद्ध हुआ कि वे भी इस मनुष्यसे भिन्न स्वतंत्र ज्ञानरूप और शरीर सहित व्यक्ति है।
(५) ऊपर नं० (८-६) में जो वृत्त बतलाया है यह सिद्ध करता है कि शरीर संयोगी पदार्थ है; इसीलिये हाथ जितना भाग उसमें से अलग हो सका। यदि वह एक अखंड पदार्थ होता तो हाथ जितना टुकड़ा काटकर अलग न किया जा सकता। पुनश्च वह यह सिद्ध करता है कि शरीरसे ज्ञान स्वतंत्र है क्योंकि शरीरका अमुक भाग कटाया तथापि उतने प्रमाणमे ज्ञान कम नही होता किन्तु उतना ही रहता है, और यद्यपि शरीर कमजोर होता जाय तथापि ज्ञान बढता जाता है अर्थात् यह सिद्ध हुआ कि शरीर और ज्ञान दोनों स्वतत्र वस्तुऐ है।।
(६) उपरोक्त न० (१०) से यह सिद्ध हुआ कि यद्यपि ज्ञान बढा तो भी वजन नही बढ़ा परन्तु ज्ञानके साथ सम्बन्ध रखनेवाले धैर्य, शाति आदिमें वृद्धि हुई, यद्यपि शरीर वजनमें घटा तथापि ज्ञानमे घटती नही हुई, इसलिये ज्ञान और शरीर ये दोनो भिन्न, स्वतत्र, विरोधी गुणवाले पदार्थ हैं। जैसे कि-(अ) शरीर वजन सहित और ज्ञान वजन रहित है (ब) शरीर घटा, ज्ञान बढ़ा, (क) शरीरका भाग कम हुआ, ज्ञान उतना ही रहा और फिर बढ़ा; ( ड ) शरीर इन्द्रिय गम्य है, संयोगी है और अलग हो