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सूत्र नम्बर विषय
पत्र संख्या प्रभावनाका सच्चा स्वरूप
१६६ सच्ची दया (अहिंसा)
१६७ आनन्दकारी भावनावाला क्या करे श्रुतज्ञानका अवलम्बन ही प्रथम क्रिया है धर्म कहाँ और कैसे ?
१६६ सुखका उपाय ज्ञान और सत् समागम जिस ओर की रुचि उसीका रटन
१७२ श्रुतज्ञानके अवलम्बनका फल-आत्मानुभव
१७४ सम्यग्दर्शन होनेसे पूर्व
१७५ धर्मके लिये प्रथम क्या करें सुखका मार्ग, विकारका फल, असाध्य, शुद्धात्मा
१७७ धर्मकी रुचिवाले जीव कैसे होते हैं ? उपादान निमित्त और कारण-कार्य
१७६ अन्तरंग अनुभवका उपाय-ज्ञानकी क्रिया
१७६ ज्ञानमें भव नहीं है
१८० इसप्रकार अनुभवमें आनेवाला शुद्धात्मा कैसा है ?
१८१ निश्चय-व्यवहार
१८१ सम्यग्दर्शन होने पर क्या होता है
१८२ बारम्वार ज्ञानमें एकाग्रताका अभ्यास अन्तिम अभिप्राय
१८३-८४ प्रथम अ० का परिशिष्ट-४
१५५ तत्त्वार्थ श्रद्धानको स० द० का लक्षण कहा है उस लक्षणमें अव्याप्ति आदि दोषका परिहार
१८५ प्रथम अध्यायका परिशिष्ट नं०५
२००-२१४ केवलज्ञान [ केवलीका ज्ञान ] का स्पष्टरूप और अनेक शास्त्रोंका आधार
२००-२१४
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