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सूत्र नम्बर
विपय
पत्र संख्या अध्याय दूसरा १ जीवके असाधारण भाव औपशामिकादि पॉच भावोंकी व्याख्या
२१४ यह पाँच भाव क्या यतलाते हैं ? उनके कुछ प्रश्नोत्तर
२१८ पोपशामक भाव फव होता है
२९६ उनकी महिमा
२२० पाँच भावोंके सम्बन्धमें कुछ स्पष्टीकरण पॉच भावोंके सम्बन्धमें विशेप ,
२२५ जीवका कर्त्तव्य
२२४ इस सूत्रमें नय-प्रमाणकी विवक्षा
२२६ २ भावोंके भेद
२२६ ३ औपशमिक भावके दो भेद
२२६ ४ क्षायिकभावके नव भेद
२२७ ५ . क्षायोपशमिक भावके १८ भेद ६. औदयिक भावके २१ भेद ५. पारिणामिकभावके तीन भेद
०३२ - उनके विशेष स्पष्टीकरण
२३३ ... अनादि अज्ञानीके कौनसे भाव कभी नहीं हुए ?
२३४ औपशमिकादि तीन भाव कैसे प्रगट होते हैं ?
२३४ कौनसे भाव बन्धरूप हैं
२३४ ८ जीवका लक्षण
२३५ आठवें सूत्रका सिद्धान्त
२३६ है उपयोग के भेद
२३७ साकार-निराकार
२३४-४०. दर्शन और ज्ञानके बीचका भेद
२४० उस मेदकी अपेक्षा और अभेदकी अपेक्षासे दर्शन-ज्ञानका अर्थ २४१
२२६
२३०