________________
४५४
मोक्षशास्त्र में निमित्त है (सूत्र १७) । उसे अवकाश देने में आकाश निमित्त है और परिणमनमें काल निमित्त है (सूत्र १८, २२) अरूपी ( सूक्ष्म ) होनेसे धर्म और अधर्म द्रव्य लोकाकाशमें एक समान (एक दूसरेको व्याघात पहुँचाये बिना ) व्याप्त हो रहे हैं ( सूत्र १३)
(ब) अधर्म द्रव्य उपरोक्त समस्त बातें अधर्मद्व्यके भी लागू होती है इतनी विशेषता है कि धर्मद्रव्य जीव-पुद्गलोंको गतिमें निमित्त है तब अधर्मद्रव्य ठहरे हुये जीव-पुद्गलोंको स्थितिमें निमित्त है।
(क) आकाशद्रव्य आकाशद्रव्य एक, अजीव, अनन्त प्रदेशी है। (सूत्र १, २, ६, ६) नित्य अवस्थित, अरूपी और हलन चलन रहित है। (सूत्र ४, ७) अन्य पांचों द्रव्योंको अवकाश देनेमें निमित्त है। (सूत्र १८ ) उसके परिणमनमें कालद्रव्य निमित्त है (सूत्र २२)। आकाशका सबसे छोटा भाग प्रदेश है।
(ड) कालद्रव्य कालद्रव्य प्रत्येक अणुरूप, अरूपी, अस्तिरूपसे किन्तु कायरहित, नित्य और अवस्थित अजीव पदार्थ है ( सूत्र २, ३६, ४) वह समस्त द्रव्योके परिणमनमे निमित्त है ( सूत्र २२ ) कालद्रव्यको स्थान देने में प्राकाश द्रव्य निमित्त है ( सूत्र १८) एक आकाशके प्रदेशमें रहे हुये अनन्त द्रव्योंके परिणमनमें एक कालाणु निमित्त होता है, इस कारणसे उसे उपचारसे अनन्त समय कहा जाता है तथा भूत भविष्यकी अपेक्षासे अनन्त है । कालकी एक पर्यायको समय कहते है। ( सूत्र ४० )
(इ) पुद्गलद्रव्य (१) यह पुद्गल द्रव्य अनन्तानन्त हैं, वह प्रत्येक एक प्रदेशी है ( सूत्र १, २, १०, ११)। उसमें स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि विशेप गुण हैं अतः वह रूपी है ( मूत्र २३, ५) उन विशेष गुणोमें से स्पर्ग गुणकी