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________________ अध्याय ५ उपसंहार ४५५ स्निग्ध या रूक्षकी जब अमुक प्रकारको अवस्था होती है तब बन्ध होता है ( सूत्र ३३ ) बन्ध प्राप्त पुद्गलोंको स्कंध कहा जाता है। उनमेसे जीवके संयोगरूप होनेवाले स्कंध शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छ्वासरूपसे परिणमते हैं (सूत्र २५, १६) । कितनेक स्कंध जीवके सुख, दुःख, जीवन और मरणमे निमित्त होते हैं ( सूत्र २० )। (२) स्कन्धरूपसे परिणमे हुये परमाणु संख्यात असंख्यात और अनंत होते हैं। तथा बन्धकी ऐसी विशेषता है कि एक प्रदेशमें अनेक रहते हैं, अनेक स्कन्ध संख्यात प्रदेशोंको और असंख्यात प्रदेशोंको रोकते हैं तथा एक महास्कंघ लोक प्रमाण असंख्यात आकाशके प्रदेशोंको रोकता है ( सूत्र १०, १४, १२) (३) जिस पुद्गलको स्निग्धता या रूक्षता जघन्यरूपसे हो वह बन्धके पात्र नहीं तथा एक समान गुणवाले पुद्गलोंका बन्ध नही होता ( सूत्र ३४, ३५)। जघन्य गुणको छोड़कर दो अंश ही अधिक हों वहाँ स्निग्धका स्निग्धके साथ, रूक्षका रूक्षके साथ, तथा स्निग्ध रूक्षका परस्परमें बन्ध होता है और जिसके अधिक गुण हों उसरूपसे समस्त स्कंध हो जाता है ( सूत्र ३६, ३७ ) स्कंधकी उत्पत्ति परमाणुओके भेद (छूट पडनेसे-अलग होनेसे ) संघात ( मिलनेसे ) अथवा एक ही समय दोनो प्रकारसे ( भेद-संघातसे ) होती है (सूत्र २६) और अणुकी उत्पत्ति भेदसे होती है ( सूत्र २७ ) भेद संघात दोनोंसे मिलकर उत्पन्न हुआ स्कंध चक्षुइन्द्रियगोचर होता है (सूत्र २८ )। (४) शब्द, बन्ध, सूक्ष्म, स्थूल, सस्थान, भेद, तम, छाया, तप और उद्योत ये सब पुद्गलकी पर्यायें है । (५) पुद्गल द्रव्यके हलन चलनमें धर्मद्रव्य और स्थितिमें अधर्मद्रव्य निमित्त है ( सूत्र १७ ); अवगाहनमे आकाशद्रव्य निमित्त है और परिणमनमें कालद्रव्य निमित्त है ( सूत्र १८, २२)। (६ ) पुद्गल स्कंधोको शरीर, वचन, मन और श्वासोच्छ्वास रूपसे परिणमानेमे जीव निमित्त है ( सूत्र १९ ); वन्धरूप होने में परस्पर निमित्त है ( सूत्र ३३ ) ।
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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