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मोक्षशास्त्र होता है अर्थात् प्रत्येक द्रव्य अपने भावसे परिणमता है, परके भावसे नहीं परिणमता; अतः यह सिद्ध हुआ कि प्रत्येक द्रव्य अपना काम कर सकता है किन्तु दूसरेका नहीं कर सकता ॥ ४२ ॥
उपसंहार इस पांचवें अध्यायमें मुख्यरूपसे अजीवतत्वका कथन है। अजीव तत्त्वका कथन करते हुए, उसका जीवतत्त्वके साथ संबंध बतानेकी पावश्यकता होने पर जीवका स्वरूप भी यहां बताया गया है। पुनरपि छहों द्रव्योंका सामान्य स्वरूप भी जीव और अजीवके साथ लागू होनेके कारण कहा है इस तरह इस अध्यायमें निम्न विषय आये हैं
(१) छहों द्रव्योंके एक समान रीतिसे लागू होनेवाले नियमका स्वरूप, (२) द्रव्योंकी संख्या और उनके नाम, (३) जीवका स्वरूप, (४) अजीवका स्वरूप, (५) स्याद्वाद सिद्धांत और (६) अस्तिकाय ।
(१) छहों द्रव्योंको लागू होनेवाला स्वरूप (१) द्रव्यका लक्षण अस्तित्व ( होनेरूप-विद्यमान ) सत् है (सूत्र२६ ) (२) विद्यमान-(सत्का) का लक्षण यह है कि त्रिकाल कायम रहकर प्रत्येक समयमें जूनी अवस्थाको दूर ( व्यय ) कर नई अवस्था उत्पन्न करना । ( सूत्र ३०) (३) द्रव्य अपने गुण और अवस्था वाला होता है, गुण द्रव्यके आश्रित रहता है और गुणमें गुण नहीं होता। वह निजका जो भाव है, उस भावसे परिणमता है ( सूत्र ३८, ४२) (४) द्रव्यके निज - भावका नाश नही होता इसलिये नित्य है और परिणमन करता है इस-) लिये अनित्य है । ( सूत्र ३१, ४२)
(२) द्रव्यों की संख्या और उनके नाम १-जीव अनेक है ( सूत्र ३ ), प्रत्येक जीवके असंख्यात प्रदेश हैं (सूत्र ८) वह लोकाकाशमें ही रहता है (सूत्र १२), जीवके प्रदेश संकोच और विस्तारको प्राप्त होते है इसीलिये लोकके असंख्यातवें भागसे लेकर समस्त लोकके अवगाह रूपसे है (सूत्र ५, १५), लोकाकाशके जितने प्रदेश