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________________ अध्याय ५ सूत्र ४२ ४५१ मर्य-[तभावः ] जो द्रव्यका स्वभाव (निजभाव, निजतत्त्व) है [ परिणामः ] सो परिणाम है। ___टीका (१) द्रव्य जिस स्वरूपसे होता है तथा जिस स्वरूपसे परिणमता है वह तद्भाव परिणाम है। (२) प्रश्न-कोई ऐसा कहते है कि द्रव्य और गुण सर्वथा भिन्न है, क्या यह ठीक है? उत्तर-नही, गुण और द्रव्य कथंचित् भिन्न है कथंचित् अभिन्न है अर्थात् भिन्नाभिन्न है। संज्ञा-सख्या-लक्षण-विषयादि भेदसे भिन्न है वस्तुरूपसे प्रदेशरूपसे अभिन्न है, क्योकि गुण द्रव्यका ही परिणाम है। (३) समस्त द्रव्योके अनादि श्रीद आदिमान परिणाम होता है। प्रवाहरूपसे अनादि परिणाम' है, पर्याय उत्पन्न होती है-नष्ट होती है इसलिये वह सादि है। धर्म, अधर्म, आकाश, और काल इन चार द्रव्योके अनादि तथा आदिमान परिणाम आगम गम्य हैं तथा जीव और पुद्गलके अनादि परिणाम आगम गम्य है किन्तु उसके आदिमान परिणाम कथचित् प्रत्यक्ष भी हैं। (४) गुणको सहवर्ती अथवा अक्रमवर्ती पर्याय कहा जाता है और पर्यायको क्रमवर्ती पर्याय कहा जाता है। (५) क्रमवर्ती पर्यायके स्वरूप नियमसार गाथा १४ की टीकामें कहा है "जो सर्व तरफसे भेदको प्राप्त हो-परिणमन करे-सो पर्याय है।" द्रव्य-गुण और पर्याय-ये वस्तुके तीन मैद कहे है, परन्तु नय तो द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक दो ही कहे हैं, तीसरा 'गुरणार्थिक' नय नहीं कहा, इसका क्या कारण है ? तथा गुण क्या नयका विषय है ? इसका खुलासा पहले प्रथम अध्यायके सूत्र ६ की टीका पृष्ठ ३१-३२ मे दिया है । (५) इस सूत्रका सिद्धान्त सूत्र ४१ में जो सिद्धांत कहा है उसी प्रमाणसे वह यहां भी लागू
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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