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________________ अध्याय ५ सूत्र ३२ .४३५ दृष्टान्तोंकी जरूरत है, वे नीचे दिये जाते हैं (१) 'जीव चेतन हैं' ऐसा कहने से 'जीव अचेतन नहीं है। ऐसा उसमें स्वयं गभितरूपसे आगया । इसमे 'जीव चेतन है' यह कथन अर्पित हुआ और 'जीव अचेतन नही है' यह कथन अनर्पित हुआ। (२) 'अजीव जड़ है' ऐसा कहने से 'अजीव चेतन नही है' ऐसा उसमें स्वयं गभित रूपसे आगया। इसमें पहला कथन अर्पित है और उसमें 'अजीव चेतन नही है' यह भाव अनर्पित-गौरणरूपसे आगया, अर्थात् बिना कहे भी उसमे गर्भित है ऐसा समझ लेना चाहिये। (३) 'जीव अपने द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव से सत् है' ऐसा कहने पर 'जीव पर द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावसे असत् है ऐसा बिना कहे भी आगया । पहला कथन 'अर्पित है और दूसरा 'अनर्पित' है। (४) 'जीव द्रव्य एक है' ऐसा कहने पर उसमें यह आगया कि 'जीव गुण और पर्यायसे अनेक है।' पहला कथन 'अर्पित है और दूसरा 'अनर्पित है। (५) 'जीव द्रव्य-गुणसे नित्य है ऐसा कहनेसे उसमें यह कथन आगया कि 'जीव पर्यायसे अनित्य है। पहला कथन अर्पित और दूसरा अनर्पित है। (६) 'जीव स्व से तत् ( Identical ) है ऐसा कहनेसे उसमें यह कथन आगया कि 'जीव परसे अतत् है। इसमें पहला कथन अर्पित और दूसरा अनर्पित है। (७) 'जीव अपने द्रव्य-गुण-पर्यायसे अभिन्न है' ऐसा कहनेसे उसमें यह कथन आगया कि 'जीव परद्रव्य-उसके गुण और पर्यायसे भिन्न है। पहला कथन अर्पित और दूसरा कथन अर्पित है। (८) 'जीव अपनी पर्यायका कर्ता हो सकता है' ऐसा कहने पर 'जीव परद्रव्यका कुछ कर नही सकता' यह आगया। इसमे पहला कथन अपित और दूसरा अनर्पित है। (९) 'प्रत्येक द्रव्य अपनी पर्यायका भोक्ता हो सकता है' ऐसा
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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