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मोक्षशास्त्र
परत्व- -जिसे बहुत समय लगे उसे परत्व कहते हैं ।
अपरत्व - जिसे थोड़ा समय लगे उसे अपरत्व कहते हैं ।
इन सभी कार्योका निमित्त कारण काल द्रव्य है । वे कार्य काल को बताते हैं ।
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(३) प्रश्न - परिणाम आदि चार भेद वर्तनाके हो हैं इसलिये एक वर्तना कहना चाहिये ?
उत्तर- - काल दो तरहका है, निश्चयकाल और व्यवहारकाल | उनमें जो वर्तना है सो तो निश्चयकालका लक्षण है और जो परिणाम आदि चार भेद हैं सो व्यवहारकालके लक्षण हैं । यह दोनों प्रकारके काल इस सूत्र बताये है ।
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(४) व्यवहारकाल - जीव पुद्गल के परिणामसे प्रगट होता है । व्यवहारकालके तीन भेद हैं भूत, भविष्यत्, और वर्तमान । लोकाकाश एक एक प्रदेशमें एक २ भिन्न भिन्न असंख्यात कालाणु द्रव्य हैं, वह परमार्थं काल—निश्चयकाल है । वह कालाणु परिणति सहित रहता है । (५) उपकारके सूत्र १७ से २२ तकका सिद्धांत
कोई द्रव्य परद्रव्यकी परिणतिरूप नहीं वर्तता, स्वयं अपनी परिगतिरूप ही प्रत्येक द्रव्य वर्तता है । परद्रव्य तो बाह्य निमित्तमात्र है, कोई द्रव्य दूसरे द्रव्यके क्षेत्रमें प्रवेश नहीं करता ( अर्थात् निमित्त परका कुछ कर नहीं सकता ) ये सूत्र निमित्तनैमित्तिक सम्बन्ध बतलाता है । धर्म, अधर्म, आकाश, पुद्गल, जीव और कालके परके साथके निमित्त सम्बन्ध बतानेवाले लक्षरण वहाँ पर कहे है ।
(६) प्रश्न- "काल वर्तानेवाला है" ऐसा कहनेसे उसमें क्रिया-वानपना प्राप्त होता है ? ( अर्थात् काल पर द्रव्यको परिणमाता है, क्या ऐसा उसका अर्थ हो जाता है ? )
उत्तर—वह दूषण नहीं आता । निमित्तमात्रमें सहकारी हेतुका कथन (व्यपदेश), किया जाता है, जैसे यह कथन किया जाता है कि जाड़ों