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अध्याय ५ सूत्र २२-२३
४१७ कंडोंकी अग्नि शिष्यको पढाती है। वहां शिष्य स्वयं पढता है किन्तु अग्नि (ताप) उपस्थित रहती है इसलिये उपचारसे यह कथन किया जाता है कि 'अग्नि पढाती है। इसी तरह पदार्थोके वर्तानेमें कालका प्रेरक हेतुत्व कहा है वह उपचारसे हेतु कहा जाता है । और अन्य पांचों द्रव्य भी वहाँ उपस्थित है किन्तु उनको वर्तनामें निमित्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उनमें उस तरहका हेतुत्व नही है।
___ अव पुद्गल द्रव्यका लक्षण कहते हैं स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ॥२३॥
अर्थः-[स्पर्श रस गंध वर्णवतः] स्पर्श, रस, गंध और वर्णवाले [पुद्गलाः ] पुद्गल द्रव्य है।
टीका (१) सूत्र में 'पुद्गलाः' यह शब्द बहुवचनमें है, इससे यह कहा है कि बहुतसे पुद्गल है और प्रत्येक पुद्गलमे चार लक्षण हैं, किसीमें भी चारसे कम नही हैं, ऐसा समझाया गया है।
(२) सूत्र १६, २० वें मे पुद्गलोंका जीवके साथका निमित्तत्व बताया था और यहाँ पुद्गलका तद्भूत ( उपादान ) लक्षण बताते हैं। जीवका तद्भूत लक्षण उपयोग, अध्याय २ सूत्र अाठमें बताया गया था और यहाँ पुद्गलके तमृत लक्षण कहे है।
(३) इन चार गुणोकी पर्यायोके भेद निम्नप्रकार हैं:-स्पर्श गुण की आठ पर्यायें है १-स्निग्ध, २-रूक्ष, ३-शीत, ४-उष्ण, ५हल्का, ६-भारी, ७-मृदु और ८-कर्कश ।
रस गुणकी दो पर्यायें है १-खट्टा, २-मीठा, ३-कडुवा, ४कषायला और ५-चर्परा । इन पाँचोमेसे परमाणुमे एक कालमे एक रस पर्याय प्रगट होती है।
गंध गुणकी दो पर्यायें है:--१-सुगंध और २ --दुगंध । इन दोनों मेसे एक कालमें एक गंध पर्याय प्रगट होती है।
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