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________________ प्रध्याय ५ सूत्र २०-२१ शरीरमें घुस जानेसे जीवको दुःख क्यों होता है ? समाधान -- १. अज्ञानी जीवको शरीरमें एकत्व बुद्धि होनेसे शरीर की अवस्थाको अपनी मानता है और अपनेको प्रतिकूलता हुई ऐसा मानता है, और ऐसी ममत्व बुद्धिके कारण दुःख होता है, परन्तु सूईके प्रवेशके कारण दुःख नही हुआ है । ४१३ २. मुनिको उपसर्ग श्राने पर भी निर्मोही पुरुषार्थकी वृद्धि करता है; दुखी नही होता है और । ३. केवली-तीर्थंकरोंको कभी और किसी प्रकार उपसर्ग नही होता [ त्रिलोक प्रज्ञप्ति भाग - १ -पृ० ८ श्लो० ५६-६४ ] ४. ज्ञानीको निम्न भूमिकामें अल्प राग है वह शरीरके साथ एकत्व बुद्धिका राग नही है, परंतु अपनी सहन शक्तिकी कमजोरीसे जितना राग हो उतना ही दुःख होता है; - सूईसे किंचित् भी दुःख होना मानता नही है । ५. विशेष ऐसा समझना चाहिये कि सूई और शरीर भिन्न भिन्न द्रव्य है, सूईका शरीरके परमाणुओंमे प्रवेश नही हो सकता 'एक परमाणु दूसरेको परस्पर चुंबन भी नही करते' तो सूईका प्रवेश शरीरमें कैसे हो सकता है ? सचमुच तो सूईका शरीरके परमाणुओमें प्रवेश नही हुम्रा है, दोनों की सत्ता और क्षेत्र भिन्न २ होने से, आकाश क्षेत्रमें दोनोंका संयोग हुआ कहना वह व्यवहारमात्र है । जीवका उपकार परस्परोपग्रहो जीवानाम् ॥ २१ ॥ पर्थ - [ जीवानाम् ] जीवोके [ परस्परोपग्रहः ] परस्परमे उपकार है । टीका (१) एक जीव दूसरे को सुखका निमित्त, दुःखका निमित्त, जोवन का निमित्त, मरणका निमित्त, सेवा सुश्रुषा आदिका निमित्त होता है । (२) यहाँ 'उपग्रह' शब्द है । दुःख और मरणके साथ भी उसका
SR No.010422
Book TitleMoksha Shastra arthat Tattvartha Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRam Manekchand Doshi, Parmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages893
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size35 MB
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