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अध्याय ५ सूत्र १८-१९ ऊपर कहे गये द्रव्य गति रहित है तो भी लोकाकाशमें उनकी व्याप्ति है इसलिये यह उपचार किया जाता है कि आकाश उन्हें अवकाश देता है।
(४) प्रश्न-आकाशमे अवगाहन हेतुत्व है तथापि वज्र इत्यादिसे गोले आदिका और भीत ( दीवाल ) आदिसे गाय आदिका रुकना क्यों होता है।
उचर-स्थूल पदार्थोका ही पारस्परिक व्याघात हो ऐसा निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध है, इसीलिये आकाशके गुणमे कोई दूषण नहीं आता। अब पुद्गल द्रव्यका जीवके साथ निमित्त नैमिचिक
सम्बन्ध बताते हैं शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् ॥ १६ ॥
अर्थ-[ शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः ] शरीर, वचन, मन तथा श्वासोच्छवास ये [पुदगलानाम् ] पुद्गल द्रव्यके उपकार है अर्थात् शरीरादिकी रचना पुद्गलसे ही होती है।
टीका (१) यहाँ 'उपकार' शब्दका अर्थ भला करना नही, किन्तु किसी कार्यमे निमित्त होय तिसको उपकारी कहिये है। ( देखो १७ वें सूत्रकी टीका)
(२) शरीरमें कार्माण शरीरका समास होता है । वचन तथा मन पुद्गल हैं, यह पांचवें सूत्रकी टीकामें बताया गया है। प्राणापान ( श्वासोच्छ्वास ) पुद्गल है ।
(३) भावमन लब्धि तथा उपयोगरूप है । यह अशुद्ध द्रव्याथिक नयकी अपेक्षासे जीव की अवस्था है । यह भावमन जब पौद्गलिक मनकी ओर झुकाव करता है तब कार्य करता है इसलिये निश्चय (परमार्थ, शुद्ध ) नयसे यह जीवका स्वरूप नही है; निश्चय नयसे वह पौगलिक है।
(४) भाववचन भी जीव की अवस्था है। वह अशुद्ध द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षासे जीवकी अवस्था है। उसके कार्यमे पुद्गलका निमित्त होता