________________
४१०
मोक्षशास्त्र
योंके द्वारा ग्रहण न किया जाय यदि उसका अभाव मानेंगे तो बहुत सी वस्तुनोंका अभाव मानना पड़ेगा । जैसे अमुक पेढ़ीके बुजुर्ग, दूरवर्ती देश, भूतकालमें हुए पुरुष, भविष्य में होनेवाले पुरुष ये कोई आँखसे नहीं देखे जाते, इसलिये उनका भी अभाव मानना पड़ेगा; अतः यह तर्क यथार्थ नहीं है । अमूर्ति पदार्थोंका सम्यग्ज्ञानी छद्मस्थ अनुमान प्रमाणसे निश्चय कर सकता है और इसीलिए उसका यहाँ लक्षरण कहा है ।
अब आकाश और दूसरे द्रव्योंके साथका निमित्च नैमित्तिक सम्बन्ध बताते हैं
आकाशस्यावगाहः ॥ १८
अर्थ – [ अवगाहः ] समस्त द्रव्योंको अवकाश-स्थान देना यह [ श्राकाशस्य ] आकाशका उपकार है ।
टीका
( १ ) जो समस्त द्रव्योंको रहनेको स्थान देता है उसे श्राकाश कहते हैं । 'उपकार' शब्दका अध्याहार पहले सूत्रसे होता है ।
( २ ) यद्यपि अवगाह गुरण समस्त द्रव्योंमें है तथापि श्राकाशमें यह गुरण सबसे बड़ा है, क्योंकि यह समस्त पदार्थोको साधारण एक साथ अवकाश देता है । अलोकाकाशमें अवगाह हेतु है किन्तु वहाँ श्रवगाह लेनेवाले कोई द्रव्य नही हैं इसमें आकाश का क्या दोष है ? श्राकाशका अवगाह देनेका गुरण इससे बिगड़ या नष्ट नही हो जाता, क्योकि द्रव्य अपने स्वभाव को नही छोड़ता ।
(३) प्रश्न- जीव और पुद्गल क्रियावाले है और क्रियापूर्वक श्रवगाह करनेवालोंको अवकाश देना ठीक है, किन्तु यह कैसे कहते हो कि धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय और काला तो क्षेत्रांतर की क्रिया रहित है और आकाशके साथ नित्य संबंधरूप है फिर भी उन्हें अवकाश दान देता है ?
उत्तर- - उपचार से अवकाश दान देता है ऐसा कहा जाता है । जैसे - आकाश गति रहित है तो भी उसे सर्वगत कहा जाता है । उसीप्रकार