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मोक्षशास्त्र
प्रमाण ) लब्ध्यपर्याप्तक सूक्ष्म निगोदिया जीवका है, जो एक श्वासमें १८ बार जन्म लेता है तथा मरण करता है ।
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( ३ ) स्वभावसे जीव अमूर्तिक है किन्तु अनादिसे कर्म के साथ एक क्षेत्र वगाह सम्बन्ध है और इसप्रकार छोटे बड़े शरीर के साथ जीवका संबंध रहता है | शरीरके अनुसार जीवके प्रदेशोंका संकोच विस्तार होता है, ऐसा निमित्त - नैमित्तिक सम्बन्ध है ।
(४) प्रश्न - धर्मादिक छहों द्रव्योंके परस्पर में प्रदेशोंके अनुप्रवेशन होनेसे क्या एकता प्राप्त होती है ?
उत्तर- — उनके एकता प्राप्त नहीं होती । आपसमें अत्यन्त मिलाप होनेपर भी द्रव्य अपने अपने स्वभावको नहीं छोड़ते । कहा है कि - 'छहों द्रव्य परस्पर प्रवेश करते है, एक दूसरेको अवकाश देते हैं और नित्य मिलाप होनेपर भी अपने स्वभावको नही छोडते ।" [ पंचास्तिकाय गाथा ७ ] द्रव्य बदलकर परस्पर में एक नहीं होते, क्योंकि उनमे प्रदेश से भेद है, स्वभावसे भेद है और लक्षरगसे भेद है |
(५) १२ से १६ तकके सूत्र द्रव्योंके अवगाह ( स्थान देने ) के संबंध में सामान्य - विशेषात्मक अर्थात् अनेकांत स्वरूपको कहते है । अब धर्म और अधर्म द्रव्यका जीन और पुद्गल के साथ का विशेष सम्बन्ध बतलाते हैं
गतिस्थित्युपग्रह धर्माधर्मयारुपकारः ॥ १७ ॥
अर्थ:- [ गतिस्थित्युपग्रहो ] स्वयमेव गमन तथा स्थितिको प्राप्त हुए जीव और पुद्गलोके गमन तथा ठहरनेमे जो सहायक है सो [धर्माधर्मयोः उपकारः ] क्रमसे धर्म और अधर्म द्रव्यका उपकार है ।
टीका
१. उपकार, सहायकता, उपग्रहका विषय १७ से २२ तकके सूत्रों में दिया गया है । वे भिन्न भिन्न द्रव्योंका भिन्न भिन्न प्रकारका निमित्तत्व