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मोक्षशास्त्र (२) यह सूत्र यह भी बतलाता है कि धर्म द्रव्यके प्रत्येक प्रदेशका अधर्म द्रव्यके प्रत्येक प्रदेशमें व्याघात रहित (वे रोक टोक) प्रवेश है और अधर्म द्रव्यके प्रत्येक प्रदेशका धर्म द्रव्यके प्रत्येक प्रदेश में व्याघात रहित प्रवेश है। यह परस्परमें प्रवेशपना धर्म-अधर्मकी अवगाहन शक्तिके निमित्त से है।
(३ ) भेद-संघातपूर्वक आदि सहित जिसका सम्बन्ध है, ऐसे प्रति स्थूल स्कंधमें वैसे किसीके स्थूल प्रदेश रहने में विरोध है और धर्मादिक द्रव्योंके आदि मान सम्बन्ध नहीं है किंतु पारिणामिक अनादि सम्बन्ध है इसलिए परस्परमें विरोध नहीं हो सकता। जल, भस्म, शकर आदि मूर्तिक संयोगी द्रव्य भी एक क्षेत्र में विरोध रहित रहते हैं तो फिर प्रमूर्तिक-धर्म, अधर्म और आकाशके साथ रहने में विरोध कैसे हो सकता है ? अर्थात् नही हो सकता।
अब पुद्गलका अवगाहन बलाते हैं एकप्रदेशादिषु भाज्यः पुद्गलानाम् ॥१४॥
अर्थ-[पुद्गलानाम् ] पुद्गल द्रव्यका अवगाह [एक प्रदेशादिषु] लोकाकाशके एक प्रदेशसे लेकर संख्यात और असंख्यात प्रदेश पर्यंत भाज्य: ] विभाग करने योग्य है-जानने योग्य है।
टीका समस्त लोक सर्व ओर सूक्ष्म और बादर अनेक प्रकारके अनन्तानन्त पुद्गलोसे प्रगाढ़ रूपसे भरा हुआ है। इसप्रकार सम्पूर्ण पुद्गलोंका अवगाहन सम्पूर्ण लोकमें है । अनन्तानन्त पुद्गल लोकाकाशमें कैसे रह सकते हैं, इसका स्पष्टीकरण इस अध्यायके १० वें सूत्रकी टीकामें किया गया है, उसे समझ लेना चाहिए।
____ अब जीवोंका अवगाहन बतलाते हैं असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ॥१५॥