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श्रध्याय ५ सूत्र ७
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द्रव्य [ निष्क्रियाणि ] किया रहित है अर्थात् ये एक स्थानसे दूसरे स्थानको प्राप्त नही होते ।
टीका
(१) क्रिया शब्दके कई अर्थ है - जैसे - गुणकी परिणति, पर्याय, एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्रमे गमन । इन अर्थोंमेंसे अतिम अर्थ यहाँ लागू होता है । काल द्रव्य भो क्षेत्रके गमनागमनसे रहित है, किन्तु यहाँ उसके बतलाने का प्रकरण नही है, क्योंकि पहिले सूत्रमे कहे गए चार द्रव्यों का प्रकरण चल रहा है, जीव और कालका विषय नही चल रहा है। पुद्गल द्रव्य अणु श्रौर स्कंध दोनों दशाओंमें गमन करता है अर्थात् एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्रमे गमन करता है इसलिये उसे यहाँ छोड दिया है । इस सूत्र में तीन द्रव्यों मे क्रियाका अभाव बताया और बाकी रहे पुगल द्रव्यमे क्रिया-हलन चलनका अस्तित्व बतानेको अनेकान्त सिद्धांत के अनुसार क्रियाका स्वरूप सिद्ध किया है ।
(२) उत्पाद व्ययरूप क्रिया प्रत्येक द्रव्यमे समय समय पर होती है, वह इन द्रव्योमे भी है ऐसा समझना चाहिये ।
( ३ ) द्रव्यों में दो तरह की शक्ति होती है एक भाववती और दूसरी क्रियावती; उनमेसे भाववती शक्ति समस्त द्रव्योमे है ओर उससे उस शक्ति का परिणमन- उत्पाद व्यय प्रत्येक द्रव्यमे द्रव्यत्वको कायम रख कर होता है । क्रियावती शक्ति जीव और पुद्गल इन दो ही द्रव्योंमें होती है । यह दोनों द्रव्य एक क्षेत्रसे दूसरे क्षेत्रमे जाते हैं, किन्तु इतनी विशेषता है कि जीव जब विकारी हो तब और सिद्धगति मे जाते समय क्रियावान होता है और सिद्धगतिमे वह स्थिररूपसे रहता है । ( सिद्धगतिमें जाते समय जीव एक समयमे सात राजू जाता है ) सूक्ष्म- पुद्गल भी शीघ्रगतिसे एक समयमे १४ राजू जाता है अर्थात् पुद्गलमे मुख्य रूपसे हलन चलनरूप क्रिया है, जव कि जीव द्रव्यमे ससारी अवस्थामे किसी किसी समय : गमनरूप क्रिया होती है । अब धर्म
द्रव्य,
अधर्म द्रव्य और एक जीव द्रव्य के प्रदेशों की संख्या बताते हैं